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भगवान महावीर
और उनकी अहिंसा
"अपने मन, वाणी और शरीर के द्वारा, जानबूस कर तथा असावधानी से भी, किसी भी प्राणी को प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से किसी भी प्रकार का कष्ट न पहुँचाना और इसी भावना के अनुरूप अपने नित्य कर्म बहुत सावधानीपूर्वक करना ही अहिसा है।"
प्रकाशक
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