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________________ वर्ग-सघर्ष का जन्म होता है । परिणाम यह होता है कि न तो हमको ही सुख शान्ति मिल पाती है न अन्य व्यक्तियो को हो। संसार के अधिकाश युद्ध इन्ही तृष्णाओं की पूर्ति के लिए लडे गये और उनके फलस्वरूप जन व धन की कितनी हानि हुई इसका लेखा-जोखा करना असभव है। यदि हम अपनी तृष्णाओ व इच्छाओ पर अकुश लगाये और सतोषपूर्वक जीवन-यापन करें तो इससे केवल हमको ही सुख व शान्ति नहीं मिलेगी अपितु अन्य व्यक्तियो को भी सुख,व शान्ति मिलेगी। इसीलिये भगवान महावीर ने प्रत्येक व्यक्ति को अपनी तृष्णाओ व इच्छाओ पर अकुश लगाने और अपनी आवश्यकतामो को कम करते हुए सतोषपूर्वक जीवन-यापन करने का उपदेश दिया था। इसका तात्पर्य यह नहीं कि हम हाथ पर हाथ धर कर बैठ जाये अपितु इसका तात्पर्य यही है कि परिश्रम, ईमानदारी तथा अहिंसक व समुचित साधनो से हमको जो भी मिले हम उसमे सतोष रखे और यथाशक्ति अपने तन, मन व धन से दूसरो की भनाई करते रहे । आज जिस समाजवाद और अधिकतम सम्पत्ति सीमा नियम को लागू करने के लिये शासक अपने अधिकार व कानून का प्रयोग कर रहे हैं, भगवान महावीर ने प्रत्येक व्यक्ति से उसको स्वत ही अपने ऊपर लागू करने का आग्रह किया था। __ संयम : भगवान महावीर ने कहा था कि अहिंसा व परिग्रह-परिमाण व्रत के पालन के साथ-साथ हमको अपने मन, अपने कान, आख, नाक, जिह्वा आदि इन्द्रियों को भी अपने वश में रखना चाहिये अर्थात् अपना जीवन सयमपूर्वक व्यतीत करना चाहिये। सयम का जीवन मे बहुत बड़ा महत्व है। इन इन्द्रियो को अपने वश में रखने
SR No.010132
Book TitleMahavir aur Unki Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Radio and Electric Mart
PublisherPrem Radio and Electric Mart
Publication Year1974
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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