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________________ यह चिह्न जैन प्रतीक है, जिसको समस्त जैन समाज ने एक मत से स्वीकार किया है। सबसे बाहर जैन मान्यता के अनुसार त्रिलोक का आकार दिया गया है। स्वस्तिक का चिह्न चतुर्गति का प्रतीक है। स्वस्तिक के ऊपर तीन बिन्दु त्रिरत्न के द्योतक है, जो सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र को दर्शाते हैं। त्रिरत्न के ऊपर अर्द्ध-चन्द्र, सिद्ध-शिला को लक्षित करता है । अर्द्ध-चन्द्र के ऊपर एक बिन्दु है जो मुक्त जीव का द्योतक है । स्वस्तिक के नीचे जो हाथ दिया गया है वह अभय का बोध देता है तथा हाथ के बीच मे जो चक्र दिया गया है वह अहिंसा का धर्म-चक्र है। चक्र के बीच मे अहिसा लिखा हुआ है। त्रिलोक के आकार मे प्रतीक का स्वरूप यह बोध देता है कि चतुर्गति मे भ्रमण करती हुई आत्मा अहिसा धर्म को अपनाकर सम्यक्-दर्शन, सम्यक्-ज्ञान एव सम्यक्-चारित्र के द्वारा मोक्ष प्राप्त कर सकती है। प्रतीक के नीचे जो सस्कृत वाक्य "परस्परोपग्रहो जीवानाम्" दिया गया है इसका तात्पर्य है, "जीवो का परस्पर उपकार"। प्रतीक मे जैन दर्शन का यह सूत्र युग-युग से सम्पूर्ण जगत् को शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व की ओर बढ़ने की प्रेरणा देता है। इस प्रतीक से समूचे जैन शासन की सुन्दर अभिव्यक्ति मिलती है। सचमुच मे यह प्रतीक हमे ससार से ऊपर उठकर मोक्ष के प्रति प्रयत्नशील होने का पाठ पढ़ाता है।
SR No.010132
Book TitleMahavir aur Unki Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Radio and Electric Mart
PublisherPrem Radio and Electric Mart
Publication Year1974
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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