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________________ होते हैं जो अपने मन, वाणी व कार्यरूप से उस बात पर आचरण कर लेते हैं। इतनी सब अनुकूलताएँ उपलब्ध होने पर भी यदि हम अपना भविष्य नही सुधारते और मुक्ति प्राप्त करने के मार्ग पर अग्रसर नहीं होते तो हमसे अधिक अभागा और मूर्ख कौन होगा? पैदा होना, खाते-पीते रहना, इन्द्रियो के विषय सेवन करते रहना और अन्तत मर जाना-क्या यही मनुष्य जीवन की उपलब्धि है ? ये सब कार्य तो पशु-पक्षी भी कर लेते हैं। फिर मनुष्य मे और पशु-पक्षी मे क्या अन्तर रहा ? वास्तव में यह मनुष्य जन्म तो उस जकशन अथवा चौराहे के समान है, जहा से हम जिधर भी चाहे, जा सकते हैं । मनुष्य जन्म प्राप्त कर हम इस ससार तथा अपनी आत्मा का सच्चा स्वरूप जानकर हिंसा, राग, द्वेष, काम, क्रोध, मोह, मान, माया, लोभ आदि की भावनाओ का त्याग कर, सयम व तप के द्वारा अपने कर्मों को नष्ट करके, अपनी आत्मा के कल्याण की ओर-मुक्ति की ओर भी अग्रसर हो सकते हैं और इसके विपरीत अपने अज्ञान और अपनी राग-द्वेष की भावनाओ के कारण चिरकाल के लिये पशु-पक्षी आदि की नीच योनियो मे भी गिर सकते है। एक बार इस मनुष्य योनि को व्यर्थ गवा देने पर न जाने कितने काल के पश्चात् हमे यह मनुष्य जन्म फिर से प्राप्त हो? एक बात और, हमे इस भ्रम मे नही रहना चाहिए कि अभी तो हम स्वस्थ व जवान है, मृत्यु के आने मे अभी बहुत समय है, अत बुढापा आने पर धर्म-कर्म की बातें सोच लेगे। इसके विपरीत हम यह निश्चित समझ ले कि मृत्यु का कोई समय नियत नहीं होता। वह बुढापे मे भी आ सकती है और जवानी में भी। अत. हमको निश्चिन्त
SR No.010132
Book TitleMahavir aur Unki Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Radio and Electric Mart
PublisherPrem Radio and Electric Mart
Publication Year1974
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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