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________________ 1 सकती । यदि हमको ऐसी कठिन परिस्थितियो से बचना है तो हमे छोटे-छोटे रोगो के लिए औषधियो पर निर्भर रहना छोडना होगा । तथ्य यह है कि आकस्मिक दुर्घटनाओ को छोड़कर कम-से-कम पचहत्तर प्रतिशत रोग ऐसे हैं जो हमारे गलत खान-पान और गलत रहन-सहन के कारण से ही होते हैं । यदि हम अपना खान-पान और रहनसहन अपनी प्रकृति तथा देश व काल के अनुकूल रक्खे तो हमे रोगो के आक्रमण का कोई भय नही रहेगा । साधारण रोग होने पर हमको, दो-चार दिन के लिये, अपने खानपान में थोडी सावधानी बरत लेनी ही पर्याप्त है । हमको यह याद रखना चाहिए कि ये छोटे-छोटे रोग प्रकृति की ओर से चेतावनी होते हैं कि हम गलत दिशा मे जा रहे हैं। यदि हमने इन चेतावनियों पर ध्यान नही दिया तो हम बडे रोगो के चगुल में फँस जायेगे । सब से बढ़िया औषधि तो यह है कि तनिक सी तबियत खराब होते ही हम एक समय का, एक दिन का अथवा दो दिन का भोजन छोड दें और इस अवधि मे साधारण गुनगुना पानी पीते रहे। उस गरम पानी मे नीबू का रस निचोड़ ले, तो और भी अधिक अच्छा रहे । ऐसा करने से पेट मे जो भी गन्दगी इकट्री हो गयी है, वह साफ हो जायेगी और पेट को भी एक-दो दिन के लिये आराम मिल जायेगा। यदि ऐसा करने से भी पेट साफ न हो, तो हमे गरम पानी का एनीमा ले लेना चाहिए। जुलाब की दवाई लेना अच्छा नहीं होता। इसके साथ-साथ दो-चार दिन के लिये हम अपने आहार मे भी कुछ परिवर्तन कर सकते हैं। इस आसान, बिना पैसे के और बिल्कुल सुरक्षित इलाज के बजाय हम जरा-सी तबि यत खराब होने पर हो, पेट को साफ करने के बजाय, १५७
SR No.010132
Book TitleMahavir aur Unki Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Radio and Electric Mart
PublisherPrem Radio and Electric Mart
Publication Year1974
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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