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________________ प्रत्येक प्राणी, चाहे वह मनुष्य हो या पशु-पक्षी, विशालकाय हाथी हो या छोटा सा कीडा, सब ही सुख पूर्वक जीवित रहना चाहते हैं। कोई भी प्राणी यह नहीं चाहता कि उसे किसी प्रकार का कष्ट हो। वह जो भी कार्य करता है अन्ततः सुख पाने के लिये ही करता है । परन्तु वह यह नही देखता कि उसके सुख प्राप्त करने के प्रयत्नों के कारण दूसरे प्राणियो को कष्ट तो नहीं हो रहा है, जबकि उसके ऐसे प्रयत्नों से दूसरे प्राणियों को कभी प्रत्यक्ष में और कभी परोक्ष में कष्ट होता रहता है। उदाहरण के लिये, अपने स्वाद और मनोरजन के लिए दूसरे जीवो की हत्या करना और अन्य प्रकार से कष्ट देना उनको प्रत्यक्ष में ही कष्ट पहुचाना है । इसी प्रकार लालच के वश खाद्य पदार्थों मे मिलावट करना और बढ़िया वस्तु के स्थान पर घटिया वस्तु देना, दूसरो को परोक्ष रूप से कष्ट पहुचाना है, क्योकि इस प्रकार के अनैतिक आचरण से कालान्तर में दूसरो को कष्ट उठाना पडता है। दूसरे प्राणियो को इस प्रकार से कष्ट देने के कारण वह व्यक्ति स्वय खोटे कर्मों का सचय करता है और इन खोटे कर्मों के फलस्वरूप कालान्तर मे उसको भी कष्ट उठाना पडता है। इस प्रकार ससार के प्राणियों द्वारा दूसरे प्राणियो को कष्ट पहुचाने और फिर उसके फलस्वरूप स्वयं कष्ट पाने का चक्र अनादि काल से चला आ रहा है । यदि ससार का प्रत्येक प्राणी दूसरे प्राणियों को इस प्रकार प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से कष्ट देना छोड़ दे तो इस संसार में दुख का नाम निशान भी नही रहे। इसीलिए भगवान महावीर ने दूसरों को किसी भी प्रकार का कष्ट न देने अर्थात् अहिंसा का पालन करने का उपदेश दिया और बतलाया कि हिंसा ही सब दुखों की १३
SR No.010132
Book TitleMahavir aur Unki Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Radio and Electric Mart
PublisherPrem Radio and Electric Mart
Publication Year1974
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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