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________________ भी मेरे द्वारा न हो इतना मै सावधान था।" यह सर्वविदित है कि कुछ समय पश्चात् महात्मा बुद्ध ने इस कठिन मार्ग को त्याग कर मध्यम मार्ग अपना लिया था। उन्होने अपने अनुयाइयो को ऐसा मास खाने की आज्ञा दे दी थी, जो उनके लिये न बनाया गया हो। इस तनिक-सी छूट के कारण ही बौद्ध धर्मावलम्बी जी खोल कर मासाहार करते हैं। वास्तव मे इन व्यक्तियो ने जिन शब्दो का मासपरक अर्थ कर लिया है वे द्वयर्थक शब्द हैं । आजकल उनका अर्थ मास माना जाता है, परन्तु प्राचीन शब्दकोषो के अनुसार उनका अर्थ फलो का विशेष भाग माना जाता है-जैसे फल के गूदे को आजकल गूदा कहते हैं, वही गूदा प्राचीन समय मे प्राचीन शब्दकोषो के अनुसार मास कहलाता था। इस सम्बन्ध में हम वर्तमान काल का एक उदाहरण देते हैं। कुछ साल पहले तक कबाब केवल मास के ही बनाये जाते थे, परन्तु आजकल फल व सब्जियो के कबाब भी बनने लगे हैं। आधुनिक सभ्यता वाले परिवारो मे, जहा अभी तक मासाहार का प्रचलन नही हुआ है, इन फलों व शाको के बने कबाबो को फैशन समझ कर शौक से खाया जाता है और उन्हे कबाब ही कहा जाता है। इसी प्रकार फलो, सब्जियो व मिठाइयो को इस प्रकार काट कर व पका कर व सजा कर भोजन की थाली मे रखते हैं कि दूर से देखने पर वह मास ही प्रतीत होता है।। इन तथ्यो को दृष्टि में रखते हुए यह कहना कि जैन मुनि मासाहार करते थे, उन पर मिथ्या आरोप लगाना है। (8) आधुनिक इतिहासकार कहते हैं कि आज से हजारो वर्ष पहले मनुष्य असभ्य था। वह जमल मे रहता
SR No.010132
Book TitleMahavir aur Unki Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Radio and Electric Mart
PublisherPrem Radio and Electric Mart
Publication Year1974
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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