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________________ कष्ट दिये ही प्राप्त किये जाते हैं, इसलिये जैसे दूध पीने में बुराई नही है उसी प्रकार अण्डे खाने मे भी कोई बुराई नहीं है । परन्तु अण्डो और दूध को एक ही श्रेणी मे नही रखा जा सकता। दोनो का विश्लेषण करने से भी दोनो मे अलगअलग तत्व पाये जाते हैं। समय पूरा होने पर अण्डो से पक्षी निकलते है, इसलिए अण्डा स्वय भी जीव है, परन्तु दूध से ऐसा कोई जीव नही बनता । दूध देने के पश्चात् पशु को इस दूध से कुछ मोह नही रहता, जबकि पक्षी अपने अण्डो को अपने बच्चो के समान ही प्यार करते हैं, उनकी हर प्रकार से देख भाल करते है और यदि उनके rust को कोई छेडता है तो अपनी जान पर खेलकर भी उनकी रक्षा करते है । इस प्रकार यह स्पष्ट है कि अण्डो को और दूध को एक समान नही माना जा सकता । इस सम्बन्ध मे कुछ व्यक्ति यह कहते हैं कि आजकल जीव रहित अण्डो का उत्पादन हो रहा है। इन अण्डो में से पक्षी नहीं निकलते। इसलिए इन जीव रहित अण्डो के सेवन मे हिंसा नही है । परन्तु यह तर्क भी ठीक नही है । क्योकि (क) जो वस्तु शरीर से बनती है वह मास की श्रेणी मे ही आती है। इसलिए वह अभक्ष्य ही होती है । (ख) इस प्रकार के अण्डो का और साधारण अण्डो का विश्लेषण करने से इनमे कोई भेद दिखाई नही देता । (ग) इस बात का भी क्या विश्वास है कि इन अण्डों मे जीव नही होता । सम्भव है कि ऐसे अण्डों मे जो जीव होता है वह इतना शक्तिशाली न होता हो, जो पक्षी का रूप ग्रहण कर सके । १३०
SR No.010132
Book TitleMahavir aur Unki Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Radio and Electric Mart
PublisherPrem Radio and Electric Mart
Publication Year1974
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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