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________________ होते रहते हैं, मास भक्षण से इन सबकी हत्या का दोष भी लगता है। एक बात और है, न तो मास कच्चा हो खाया जा सकता है और न केवल मास पर ही कोई व्यक्ति जीवित रह सकता है। मांस तो मिठाई की तरह स्वाद के लिये खाया जाता है । आजकल अपने को आधुनिक जिताने के लिये भी मास खाया जाने लगा है । इसलिए अनाज व फलो का सेवन तो अनिवार्य है ही और उनके प्रयोग से जो हिसा होती है उस हिंसा से तो कोई भी व्यक्ति बच ही नही सकता, परन्तु मास खाना तो अनावश्यक हिसा करना है । इसके अतिरिक्त एक बात और भी विचारणीय है । जिस पशु का मास प्राप्त करना होता है उसका बघ किया जाता है, जिससे कि उसका जीवन सदैव के लिये समाप्त हो जाता है । परन्तु वृक्षो को हानि पहुचाये बिना ही उनसे फल प्राप्त किये जाते हैं । यदि वृक्ष से पका हुआ फल तोडा नही जाय तो कुछ समय पश्चात् वह फल अपने-आप ही वृक्ष से टूट जाता है । फिर जैसा कि हमने पहले बतलाया कि वनस्पति मे जीवन अवश्य होता है, परन्तु वह बिल्कुल ही क्षुद्र और अनुन्नत अवस्था में होता है । इन तथ्यो को देखते हुए यह निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है कि शाकाहार मे मासाहार की अपेक्षा बहुत कम पाप होता है । (४) कुछ व्यक्ति यह तर्क देते हैं कि ससार की जनसख्या जिस तेजी से बढती जा रही है उस अनुपात से अनाज का उत्पादन नही बढ रहा है, इसलिए अन्न की कमी को पूरा करने के लिए मासाहार आवश्यक है । यह ठीक है कि ससार की जनसख्या बढ रही है और यह भी ठीक है कि अन्न का उत्पादन उसी अनुपात से नहीं १२६
SR No.010132
Book TitleMahavir aur Unki Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Radio and Electric Mart
PublisherPrem Radio and Electric Mart
Publication Year1974
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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