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________________ लगाया है कि इन युद्धो के माध्यम से एक व्यक्ति की हत्या करने के लिए जितना धन व्यय होता है, उतने धन से कई व्यक्ति सुखपूर्वक जीवन-निर्वाह कर सकते है। इन युद्धो पर अपरिमित धनराशि व्यय होने के कारण जनसाधारण की उन्नति व सुख-सुविधा के अन्य अत्यावश्यक कार्य सम्पन्न नही हो पाते। यदि ससार के समस्त राष्ट्र सद्भावना से रहे और युद्धो मे नष्ट होने वाले धन को जनसाधारण की भलाई के लिए व्यय करें तो कुछ ही दिनो मे ससार की कायापलट हो सकती है। दूसरे शब्दो मे, हम यह कह सकते है कि यदि अहिसा का सिद्धान्त सर्वमान्य हो जाये और सब उसी के अनुसार चले तो यह ससार ही स्वर्ग बन जाये। जहा तक युद्धो के फलस्वरूप उन्नति का प्रश्न है तो वह उन्नति केवल घातक व मारक अस्त्र-शस्त्रो के बनाने मे ही होती है। मनुष्य जाति को सुख-शान्ति पहुँचाने की दिशा में कोई उन्नति नहीं होती। इसके विपरीत वैज्ञानिको ने जिन साधनो का आविष्कार मनुष्य मात्र की भलाई के लिए किया था, इन युद्धो मे उन साधनों का प्रयोग भी मनुष्य की हत्या करने के लिए ही किया जाता है। इसके अतिरिक्त सभी विद्वान यह मानते हैं कि कलाकौशल व सस्कृति की उन्नति शान्तिकाल में ही होती है, युद्धो से तो वह नष्ट ही होती है। - इसी प्रकार जहा तक हिंसक व लडाकू जातियो के उन्नत व स्वाधीन होने की मान्यता है वह भी भ्रामक है। हिंसक व्यक्ति तो क्रूर व निर्दयी होता है, उन्नत व स्वाधीन नही । यदि इस तथ्य मे सच्चाई होती तो ससार का कोई भी राष्ट्र कभी परतन्त्र नही हुआ होता, क्योकि सैकडो
SR No.010132
Book TitleMahavir aur Unki Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Radio and Electric Mart
PublisherPrem Radio and Electric Mart
Publication Year1974
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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