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________________ ४० ] प्राचीन जैन स्मारक । हैं। यहां यह कहावत प्रसिद्ध है कि जब रायद्रुगमें महाराजा राजराजेन्द्र राज्य करते थे तब राससिद्ध नामके साधु यहां निवास करते थे । यह भी कथा प्रसिद्ध है कि इस राजाके दो स्त्रियें थीं, उनमें से बड़ी श्रीरंगधर नामका पुत्र था, यह बहुत ही सुंदर था । छोटी स्त्री इसपर मोहित होगई । श्रीरंगधरने उसकी इच्छा पूर्ण नहीं की वह स्त्री कोपित होगई और बदला लेनेको अपने पतिसे चुगली खाई कि श्रीरंगधर मेरी इज्जत विगाड़ना चाहता था । राजाको क्रोध आगया और उसने आज्ञा दी कि रावनुगसे उत्तर २ मील सालेवल बंद नामकी चट्टान पर पुत्र श्रीरंगधरको लेजाओ और उसके हाथ और पग काटकर उसे छोड़ दो । आज्ञानुसार हाथ पग काट दिये गए । इतने ही में महात्मा राससिद्ध साधु उधर आ निकले । राजकुमारको पड़े हुए देखकर व निमित्तज्ञानसे उसे निरपराधी जानकर मंत्र द्वारा उसके अंग जोड़ दिये । राजकुमार उठकर तुर्त पिता के पास गया । राजाने उसको निरपराधी पाया तब अपनी दुष्टा स्त्रीको दंड दिया । इस साधुके आश्रम में अब एक उत्तर भारतके फकीर रहते हैं । हिन्दु और मुसलमान दोनों इस पर्वत के स्थान पर आकर नारियल फोड़ते हैं। इसमें तीन कोठरियाँ हैं जिनमें पाषाणके कटे हुए द्वार हैं । ये तीनों कोठरियां 1 बड़ो २ चट्टानोंके मध्य में, सुन्दर वृक्षों के बोचमें बहुत ही मनोहर स्थलपर हैं । इन चार बडी चट्टानोंपर जैन तीर्थकरों की मूर्तियां अंकित हैं । पूर्व की ओर बहुतसी हैं। यहां दो दो आलोंकी तीन कतारे हैं। ऐसे ६ आले हैं । हरएकमें जोड़े मूर्तियोंके हैं । हरएकमें दो मर्द एक दूसरेके सामने बैठे हैं। देखनेवालेकी दहानी तरफ जो
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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