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________________ मदरास व मैमुर प्रान्त। [१३ "कृष्णने चक्ररत्नकी पूजा की एवं सर्व रत्नोंसे मंडित हो, अनेकदेव असुर मनुष्योंसे मंडित हो, दक्षिण भरतक्षेत्रका विजय किया।॥३१॥ भाठ वर्ष पर्यंत कृष्णने प्रतिदिन निरवच्छिन्न रूपसे अनेक भोग भोगे, जिन राजाओंको वश करना था वश किया और आठवर्षके बाद वे कोटिशिला उठाने के लिये गए ॥३२॥वह शिला अतिशय विशेषको लिये थी, करोड़ों मुनिराज उससे मोक्ष गए थे इसलिये वह कोटिक शिलाके नामसे प्रसिद्ध थी॥३३॥ शिलाके पास पहुंचकर पहले कप्णने उसकी तीन प्रदक्षिणा दी, सिद्धोंको नमस्कार किया और अंतमें अपनी भुनाओंसे उसे चार अंगुल ऊंचे तक उठाया ॥३४॥ वह शिला एक योजन (४ कोस अनुमान) उंची, १ योजन चौड़ी और १ योजन लम्बी थी। श्रीरविषणाचार्यकृत पद्मपुराण पर्व ४८ श्रीराम लक्ष्मण शिलाकी तरफ आए । शिला महामनोहर, उसकी पूजा की, तीन प्रदक्षिणा दी। लक्ष्मणने णमोकारमंत्र पढ़ शिलाको गोड़े प्रमाण उठाया, कोटिशिलाकी यात्राकरि। बहुरि सम्मेदशिखर गए। . नोट-कोटिशिला यदि यह है तो यहांसे ही मार्ग सम्मेदशिखरका है ! बरहामपुरसे कटक होते खड़गपुर होकर गोमोह स्टेशन आता है वहीं सम्मेदशिखर है। हमें तो यही प्रतीत होता है कि यही कोटिशिला होनी चाहिये । (२) विजगापटम जिला । इसको वैशाषापट्टनम् भी कहते हैं-यह मदरास और वंगालकी खाड़ीके पास है । यह तटकी तरफ ११० मील लम्बा व भीतरको
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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