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________________ मदरास व मैमूर प्रान्त । [११ मंदिर थे जो बहुत वर्षोंसे विलकुल नष्ट होगए हैं । इस स्थानपर किसान लोगोंको सोनेकी मोहरें और मुवर्णकी मूर्तियोंके खंड मिले हैं । इस पहाड़ी पर एक पाषाणमें एक दीपक खुदा हुआ है जिसमें २५० सेर तेल आसक्ता है (नोट-इसको ग्रामवाले दीपशिला कहते हैं)। पर्वतकी तलहटीको केशरपल्ली कहते हैं । एक पुराना मंदिर किलेके पास खोदा गया था तब मूर्यनारायणकी मूर्ति निकली थी जिमको वुगुड़ामें ले जाकर नए मंदिरमें स्थापित किया गया था। प्राचीन समयमें यहां केशरी राजा रहता था। खुदे हुए पत्थर और बहुत बड़ी २ ईंटें पर्वतपर दिखलाई पड़ती हैं । कुछ मूर्तियां पर्वतपर पाई गई थीं उनको यहांसे उठा लिया गया था। वे या तो बौद्ध होंगी या जैन । वास्तवमें इस स्थानकी परीक्षा करनेकी जरूरत है। इस वर्णनको पढ़कर हमको संदेह हआ कि शायद यही कोटिशिला हो । हम वरहामपुर टेशनपर आए। यहांसे मोटरपर चढ़कर' करीब ३४ मील रमूलकड़ी रोडकी तरफ असकासे थोड़ी दूर सड़कपर मोटर द्वारा आए, निमिना ग्राममें ठहरे। यहांसे २ मील यह पर्वत है, इस निमिना ग्राममें ६ सराक (प्राचीन जैनी) जातिके 'घर हैं जो अपनेको अग्रवाल कहते हैं। उनमें मुख्य हैं-सन्यासी पात्र, भरथ पात्र, मल्ला रामचन्द्र पात्र, वेलना नारसी पात्र । इनके वरहामपुरमें ३०० वर हैं। यहांसे कुछ दूर कोदुंनमें २० घर हैं वहां हरवर्प सभा होती है तब २० घर पीछे दो आदमी आते हैं। वीमापाटन, नथिनापाटन, पेठ, पुरी व कटक जिलेके ५००० ससक जमा होते हैं। इस सभाके मंत्री बालकृष्ण पात्र हैं जो कमकोयसक वैश्यवाणी नामकी पत्रिका निकालते हैं। पहले ये सराक लोगः
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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