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________________ मदरास व मैसूर प्रान्त। [३१९ कूट वस्तीकी प्रतिष्ठा श्रीविजय व उनके शिष्य चोल्लत, सांतदेव, गुणसेनदेव, दयापालदेव, कमलभद्रदेव, अनितसेन, पंडितदेव श्रेयांस पंडितदेवने कराई थी। इस वस्तीको उर्वी तिलकम् भी कहते हैं। पूजाके लिये नन्निसांतारने श्रीकमलभद्रदेवके चरण धोकर ग्राम दान किये (७०) नं० ३६ सन् १०७७ वहीं तोरण वागिलके दक्षिण खम्भेपर। त्रिभुवनमल्लके राज्यमें नन्निसांतार आदिने पंचकूट वस्तीके लिये ग्राम दिये। (७१) नं० ३७सन् ११४७, तोरन वागिलके उत्तर खंभेपर। जगदेकमल्लके राज्यमें, राजा तैलसांतार जगदेक दानी हुए । भार्या चत्तलदेवी । इनके पुत्र श्री वल्लभराजा या विक्रमसांतार त्रिभुवन दानी पुत्री पम्पादेवी थी। पम्पादेवी महापुराणमें विदपी थी। यह इतनी विद्यासम्पन्न थी कि इसे शासन देवता कहते थे। इसकी पुत्री वांचलदेवी थी। यह अतिमव्वेके समान प्रवीण थी जो चालुक्य राजा तैलके सेनापति मलप्पाकी कन्या थी । यह वांचल देवी नागदेवकी भार्या व पाडल तैलको माता थी। यह बड़ी जिनधर्मकी भक्त थी । इसने पोन्नत शांतिपुराणको १००० प्रतियें लिखाकर बांटी तथा १५०० जिनमूर्तिये सुवर्ण व जवाहरातकी बनवाई (देखो Introduction to भट्टाकलंकदेव कृत कर्णाटक शब्दानुशासन) । पम्पादेवीने अष्ट विद्यार्चना महाभिषेक व चतुर्भक्ति रची। यह द्राविलसंघ नंदिगण, अरुंगलान्वय अजितसेन पंडितदेव या वादीमसिंहकी शिष्य श्राविका थी। पम्पादेवीके भाई श्री वल्लभरानाने वासपूज्य सि० देवके चरण धोकर दान किया।
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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