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________________ ३१६] प्राचीन जैन स्मारक । (६२) नं० ६० सन् १४७२, ग्राम यीदिवनी। श्रीपार्श्वनाथ मंदिरमें। वीरुवक्ष महारायके राज्यमें । भैरन्ननायकने पार्श्वनाथ मंदिर बनवाया व भूमि दान दी। (६३) नं० १४ सन १४१३, वहीं । भैरन्ना नायक, मंदवन्नानायकके पुत्रने श्रीवादीन्द्र विशालकीर्ति भ० की आज्ञासे श्रीनेमिनाथ मंदिरको भूमि दान दी। (६४) नं० १५९ सन ११५९, ग्राम हेरेकेरी-जैन मंदिरमें त्रिभुवनमल्छके राज्यमें । उनके आधीन, सांतारकुलके राय तेलटदेव, पोट्टी पोम्बुच्चपुरमें राज्य करते थे। भार्या अक्खादेवी थी। पुत्र काम थे । भार्या पांड्यकुली विजलदेवी थी। उनकी संतान पुत्र जगदेव, सिंगीदेव व पुत्री अलियादेवी थी। यह कादम्बवंगी होन्नेपरसकी भार्या थी। इसने अपने पुत्र जकासीदेवकी स्मृतिमें एक उच्च जिन मंदिर बनवाया और वंदनिक तीर्थके आचार्य काणरगण तिंत्रिक गच्छ के भानु कीर्ति सि० देवके चरण धोकर भूमि दान की। (६५) नं. १६१ सन् १२३९, वहीं। जैन मंदिरके दक्षिण। कुमार पंडित मुनिकी शिष्या श्राविका येकनसेठीकी स्त्री मल्लकेने समाधिमरण किया । (६६) नं० १६२ सन् १२४२ वहीं। शुभकीर्ति पंडितदेवकी शिप्या पेकमसेठीकी कन्या कामीव्वेने समाधिमरण किया। (६७) नं० १६३ सन् १४८८-वहीं। पार्श्वनाथ मंदिर में। तौल्लवदेशके संगीतपुरमें श्रीचंद्रप्रभ जिनका भक्त सलुवेन्द्र राजा राज्य करते थे । उनका मंत्री पद्म था। राजाने मंत्रीको ग्राम ओगयेकेरी दिया । तब सन् १४९८ में पद्मने पार्श्वनाथ मंदिर
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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