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________________ मदरास व मैमूर प्रान्त | [ ३०७ (१९) नं० २०९ सन् १९९० वहीं । वीरोजा और बोम्मवेने समाधिमरण किया । (२०) नं० २०२ सन् १२११ ? वहीं यादवनारायण भुजबल प्रताप चक्रवर्ती होयसाल वीरवल्लाल देवके राज्यके २१ वें वर्ष में सकलचंद्र मुनिपकी शिप्या मछोगाडंडीने समाधिमरण किया । - (२१) नं० २१९ सन् ९१८, बन्द जैन मंदिरके द्वारपर लिकेमें शाका ८३४, अकालवर्ष कन्नरदेवके राज्य में, महासामंत कलिवित्तरस वनवासी १२००० में राज्य करता था तब वहां नगरखण्ड ७० के नालगोकंडके अफिसर सत्तरस नागार्जुनने समाधिमरण किया तब राजाने उसके पतिका पढ़ उसकी स्त्री जक्कमव्वेको दिया । इसने चार मछालचावलके लायक खेत जक्किलमें जैनमंदिरके लिये दिया । इसकी प्रशंसा लिखी है कि यह बड़ी वीर थी । उत्तम पुयुशक्तियुक्ता थी, जिनेन्द्र शासन भक्ता थी यह । नगरखण्ड ७० पर उत्तमता से राज्य करती थी । इसके शरीर में कोई असाध्य रोग होगया, तब इसने अपनी कन्याको बुलाकर राज्य सुपुर्द किया और बंदनिके तीर्थ में शाका ८४० में इसने समाधिमरणकी प्रतिज्ञा धारण की । (२२) नं० २२१ सन् १०७५ | ऊपर के मंदिर के उत्तर ओर | जब चालुक्य भुवनेकमल्ल वंकापुर में राज्य करते थे तब श्री मूलसंघ कारगण के परमानंद सिद्धांतदेव के शिष्य श्रीकुलचंद्रमुनिका शासन था । महाराजाने बंदलिक तीर्थमें भरतद्वारा निर्मित श्रीशांतिनाथ जिनमंदिर के लिये नगरखंडमें भूमि दान की ।
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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