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________________ २९६] प्राचीन जैन स्मारक। किया। यह भागकर हूमछमें आया-तब यहांके स्थानीय सरदारोंने इसको शरण दी। यह आकर जित वृक्षके नीचे सोया था वहीं इसने पद्मावतीदेवी का मंदिर बनवाया । यह सब मामला सन् ई से १५९ वर्ष पहलेका है। यह बात यहां के देवेन्द्रकीर्ति भट्टारक कहते हैं । ११वीं शताब्दीके लेखसे प्रगट है कि वह उग्रवंशका था । राइससाहब कहते हैं कि हम (वीं शताव्दीका मानते हैं। (६) मलबल्ली-ता० शिकारपुर-यहांसे उत्तरप० २० मील। इसका नाम मत्तपट्टो भी है-यहां राजा अशोकके पीछेका सबसे पुराना लेख दूसरी शताब्दीका शतकर्णियोंका एक स्तंभपर है । यह लेख राजा हरिती पुत्र शतकरणीका है। (७) तालगुंड-ता० शिकारपुर-वेलगामीसे उत्तरपूर्व २ मील । इसका प्राचीन नाम अग्राहर था, इसको तीसरी शताब्दीमें कादम्बवंशी राजा मुकत्या या त्रिनेत्रने बेलगामीके किनारे स्थापित किया था। इसने अहिछेत्र (युक्तप्रांत बरेलीके पास) से १२००० ब्राह्मणों को व किसी अन्यके मतसे ३२००० ब्राह्मणोंको बुलाकर यहां बसाया। यहां बहुत प्राचीन शिलालेख हैं, सबसे प्रसिद्ध एक बंश मंदिरके सामने एक स्तम्भपर है। यह पांचवी शताब्दीका है, बहुत सुन्दर खुदाई है। इसमें संस्थत काव्योंमें कादम्बवंशका मूल लिखा गया है, यहां वहुतसे पुराने टीले हैं। (८) कुमसीनगर-शिभोगासे उत्तर पश्चिम १४ मील । प्राचीन नाम कुम्बुसे है । इसे जिनदत्तरायने जिन मंदिरके लिये दान किया।
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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