SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 322
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ___२८८] प्राचीन जैन स्मारक । ता. कादूर। (१) नं. १ सन् ९७१ ई. किलेके द्वारके स्तम्भपर । गंगवंशी इम्मादी धोरा महारानकी बड़ी रानी पाम्बव्वे थी। यह महाराज बुटुगकी वहन थी। यह बुटुग गंगराजा निसने एरयप्पाके पुत्र रायमल्लको मारकर सिंहासन लिया था ( See E. C. v. III p. 41 ) शाका (७२ या सन् ९५० में । राजा धोरा या धोरधाकी कन्या बोदियव्वा बंदिगको विवाही गई थी जो कृष्णराजाके आधीन था ( जैसा संगवनेरके लेख शाका ९२२ में है) यह राष्ट्रकूट वंशी कृष्ण तृ० अकालवर्ष था (९३९-९६८) इसकी बहन बुटुगको विवाही गई थी। (सं० नोट-यह गंगवंशी और राष्ट्रकूट वंशीके परस्पर विवाह सम्बंधका नमूना है) यह पाम्बव्वे आर्यिका गुरानी नानव्वे कंतीकी शिप्या थी। यह नानव्वे कंती आभिनंदि पंडितदेवकी कन्या व देशी ग. कुंद० देवेन्द्र सि० देवके शिष्य चन्द्रायण भ० के शिप्य गुणचंद्र भट्टारककी शिष्या थी। इसने केशलोंच किया । इसने ३० दिनका उपवास धारण किया । समाधिमरण किया । (२) नं. ३६ सन १२०३ ई० ग्राम बक्कलेगिरि । बान रघुनाथ मंदिरके बाहरी हालेमें | जब होयसाल वीरबल्लाल लाके गुंडीमें राज्य करते थे तब उनके महामंत्री सर्वाधिकारी अमितव्वादंडनायकने लोक्कुहंडीमें जैन मंदिर बनवाया व अपने चार भ्राताओंके साथ ओकलुगिरिमें एकोटि जिनालय बनवाया व श्री नयकीर्ति पंडितके चरण धोकर श्री शांतिनाथजीके लिये दान
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy