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________________ प्राचीन जैन स्मारक । श्रीजैनागमवार्धिवर्द्धनविधु: कंदर्प दर्पाप हो । भव्याम्भोज दिवाकरो गुणनिधिः कारुण्यसौधोदधिः ॥ स श्रीमान् अभयेन्द्र सन्मुनिपतिप्रख्यात शिष्योत्तमो । जीव्यात् कावानिशम् निजात्मनि रतो बालेन्द्र योगीश्वरः ॥ पूर्वाचार्यपरम्परागतजिनस्तोत्रागमाध्यात्मस । च्छास्त्राणि प्रथितानि येन सहसा भुवन्निलामंडले ॥ श्रीमन्मान्येमयेन्दुयोगिविबुधप्रख्यातसत्सूनुना । बालेन्दु व्रतियेन तेन लसति श्री जैनधर्मोधुना ॥ भावार्थ - यह है कि वे बालचंद्र योगीश्वर जयवंत हों जो श्री जैन आगमरूपी समुद्रके बढ़ानेको चंद्र है, कामके अभिमानको खंडनेवाले हैं, भव्य कमलके प्रफुल्लित करनेको सूर्य हैं, गुणोंके सागर हैं, दयाके समुद्र हैं, श्री अभयचंद मुनिपतिके प्रसिद्ध शिष्योत्तम हैं व अपने आत्मामें रत हैं, व जिसने इस जगत में आचार्योंकी परम्परासे स्तोत्र व शास्त्र रचे, ऐसे बालचन्द्र महाव्रतीसे जैनधर्मकी शोभा है । २७८ ] (१६) नं० १३२ सन् १२७४ ई० ? उसी वस्तीमें समाधि मंडपकी बाईं ओर । अभयचंद्र सिद्धांतदेव टीका करते हैं - बालचन्द्र पंडित सुनते हैं । बालचन्द अक्षपादकी युक्तियोंको खंडन करनेवाला है । (१७) नं० १३३ सन १२७९ यहीं शांतीश्वर वस्तीमें पहली मूर्तिके पाषाणपर । देशीयगण पुस्तकगच्छ कुन्द० इंग्लेश्वर घलिमें श्रीकुलभूषण सिद्धांतिक थे जिनका शिष्य सामन्त निम्बदेव थे यह बड़े जिन मंदिर के संस्थापक थे । इनके तपोगुरु माघनन्द सिद्धांत चक्रवर्ती थे । गन्ध विमुक्त मुनिका शिष्य शुभनंदि सिद्धांती उसका शिष्य चारुकीर्ति पंडितदेव उसका शिष्य श्रीमाघनंदि मट्टारक, इसके दो
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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