SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 300
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६६ ] प्राचीन जैन स्मारक | इस लेखमें लिखा है कि श्री कुन्दकुन्दाचार्य वायु द्वारा गमन कर सक्ते थे । यही बात नं० ६४, ६६, ६७, २५४ और ३५१ में भी है । ३५१ में है कि वे भूमिसे ४ इंच ऊंचे चलते थे । गोल्लाचार्य - पहले गोल्लदेशके राजा थे । इनका वंश नूतन चांडिल था । मेघचन्द्र चैवेध-बड़े विद्वान थे । सिद्धांतमें जिनसेन और वीरसेन के समान, न्यायमें अकलंक व व्याकरणमें पूज्यपादके समान । यह देशीयके वृषभ गणमें थे । (३) नं० ११७ (४३) सन् १९२३, चामुंडराय वस्ती के प्रथम स्तम्भपर। इसमें कल धोतानंदी तक वंशावली लेख नं ० १२७ के समान है । उसके आगे इस भांति है कलधौतानन्दी रविचन्द्र या पूर्णचन्द्र 1 दामनन्दी - इनके ज्येष्ठ पुत्र श्रीधरदेव थे I मलघारीदेव चन्द्रकीर्ति दिवाकर नन्दी गंधविमुक्त देव या कक्कुटासन मलधारी । यह कक्कुट आसनसे रहते थे व व कभी शरीर नहीं खुजाते थे । भचन्द्र - समाधिमरण सन् १९२३ में श्रीधरदेब
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy