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________________ २४८ ] प्राचीन जैन स्मारक | कौडिन्य गोत्रधारी नागवर्मा } मार भार्या माकनव्वे ' एचा - या बुधमित्र भार्या होचिकम्बे | इसका संरक्षक होंसालगजा नृप काम था 1 गंगराजा चम्मा चामृप लेख नं० ११८ (४४) सन् १९२० चामुण्डरायवस्ती में गंगराजाकी उपाधियें हैं । (१) महा सामन्ताधिपति, महा प्रचंड दंडनायक जिनधर्मरत्न - इस गंगराजा के पिताके गुरु कुर्ग में मुलतृरवासी श्री कनकनंदी आचार्य थे | उसकी वीरता के काम ये हैं- (१) कोन्नगलपर चालुक्यकी सेनाको विजय करना, (२) तलकाड, कोंगु व गिरीको ले लेना, (३) नरसिंहका वध, (४) गंगमंडलको लेकर महाराज विष्णुवर्द्धन के वशमें लाना, (५) चोलोंको हराना । यह मूलसंघ कुंदकुंदान्वयका प्रभावक था । यह देशीयगण पुस्तकगच्छके कुक्कुटासन मलधारी देवके शिष्य शुभचंद्र सिद्धांतदेवका शिष्य श्रावक था। इसने गंगवाड़ीके सर्व जैन मंदिरोंका जीर्णोद्धार किया । इसने श्री गोम्मटदेव के चहुंओर कोट बनवाया । चामुंडराय के पीछे यही जैन धर्मका प्रवर्द्धक था । After Chamundrai he was cheif promoter of Jain doctrine. इस गंगराजाने महाराज विष्णुवर्द्धन से परम नामका ग्राम लेकर उन मंदिरोंके लिये उसे दिया जिनको उसकी माता पोचलदेवी और उसकी स्त्री लक्ष्मीदेवीने बनवाए थे । लेख नं० २४०, २५१ व ३९७ कहते हैं कि जब उसने तलकाडपर विजय प्राप्त
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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