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________________ २२२] प्राचीन जैन स्मारक । अभिषेकका सर्व जल इसमें आ जाता है। जब यह भर जाता है तब पानी मंदिरके हातेके बाहर एक गुफामें जाता है । जो द्वारके पास है । इसको गुल्लकयिज्जेतिन्गुलु कहते हैं। श्री गोम्मटस्वामीकी मूर्तिके सामने जो स्तम्भ सहित मंडप है उसकी छतपर ९ अच्छे खुदे हुए आकार हैं। आठ दिग्पाल हैं, मध्यमें इन्द्र है जो श्री गोमटस्वामीमें अभिषेकके लिये जलका कलश लिये हुए हैं । मध्यकी छतमें लेख नं० २११ है जो कहता है कि यह मंडप बारहवीं शताब्दीके प्रारंभके अनुमान मंत्री बलदेवने बनवाया था। लेख नं० २६७ सन् ११६०के अनुमान कहता है कि सेनापति भरतमय्याने श्री गोमटस्वामीके चारोंतरफ दालान बनवाया। नं० १८२ (७८) सन् १२०० के अनुमानका कहता है कि श्री नयकीर्ति सिद्धांतचक्रवर्तीके शिष्य श्रावक बासवी सेठीने हातेकी भीत बनवाई और २४ तीर्थकर स्थापित किये और उसके पुत्रोंने २४ तीर्थकरोंके सामने खिड़कीदार द्वार बनवाए।नं० २२८ (१०३) सन् १९०९का कहता है कि महाराज चंगल्व महादेवके महामंत्री ननराय पाटनके श्रावक के शवनाथके पुत्र चन्नबोम्मरसने ऊपर तक जीर्णोद्धार कराया। कोट या हाता-लेख नं० १७७ (७६) तथा १८० (७५) जो कन्नड़ और मराठीमें क्रमसे इस बड़ी मूर्तिके बिलकुल नीचे दोनों तरफ लिखे हैं कहते हैं कि कोटको गंगराजाने बनवाया। यही बात लेख नं० ७३ (५९) सन् १११८, १२५ (४५) और २५१ सन् १११८७२४ ० (९०) सन् ११७५, नं० ३९७ सन् ११७९ (?) भी कहते हैं । यह गंगराना होयसालवंशी महाराज विष्णुव
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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