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________________ २१४ ] प्राचीन जैन स्मारक | है । कुछ वर्ष हुए मरम्मत किये जानेसे यह लेख नष्ट होगया है । (२०) चामुण्डराय चट्टान- इस चंद्रगिरिके नीचे एक खुदा हुआ पाषाण है । यह बात प्रसिद्ध है कि चामुण्डरायको स्वप्न आया था कि सामने बड़े पर्वतपर श्रीगोमटस्वामीकी मूर्ति झाड़ी जंगलके भीतर छिपी हुई है, वह यहांसे तीर मारेगा तो वहीं पहुंचेगा । इस स्वप्न के अनुसार चामुण्डरायने यहांसे तीर मारके प्राचीन मूर्तिका पता लगाया । इस चट्टानपर जैन गुफाओंके चित्र हैं, नीचे नाम भी दिये हुए हैं। दोदाबेट ( बड़ा पर्वत) या विंध्यगिरि - यह पर्वत समुद्रसे ३३४७ फुटके करीब ऊंचा है । तथा मैदानसे ४७० फुट ऊंचा है । इस पर्बतको इंद्रगिरि कहते हैं । नीचे से ऊपर पहाड़ीकी चोटी तक ५०० सीढ़ियां चली गई हैं। सबके ऊपर बड़ा दाता है जिसके चारों तरफ कोट है उसमें कोठरियां हैं जिनमें जैन मूर्तियां विराजित हैं । इस हातेके मध्य में श्री गोम्मटस्वामीकी बड़ी मूर्ति ५७ फुट ऊंची है । इस मूर्तिका मुख उत्तरकी तरफ है। जांघके ऊपर इसको आधार नहीं है । बाल ऊपर घुंघरवाले हैं। पाससे सर्प निकलकर आए हैं। मूर्तिका आसन एक कमलपर है । मूर्तिके ठीक मध्य में एक पुष्प है । कुछ पुराने निवासी कहते हैं कि यदि इसकी मापको १८ से गुणा किया जावे तो मूर्तिकी ऊंचाई, निकल आएगी । यह मूर्ति किसी वड़े पाषाणसे बनाई गई है जो यहां विद्यमान था । मिश्रदेशमें Ramases रामासीसकी मूर्ति है उससे यह मूर्ति बड़ी । इस पर वर्षा व धूपका असर नहीं पड़ा है। यह बहुत ही स्वच्छ झलकती है। यह मूर्ति अनुमान १००० वर्ष पुरानी है तब
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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