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________________ मदरास व मैसूर सान्त । [२०७ ऐश्वर्यका, अंतिम राष्ट्रकूट राजाके समाधिमरणका, होयसाल वंशके स्थापन और विस्तारका, विजयनगर राजाओंकी उच्चताका तथा मैसूर राज्यकीय घरानेका हाल प्रगट होता है । भूमिकासे नीचे का हाल प्रगट होता हैश्रवणबेलगोला अर्थ जैन साधुओंका बेलगोला है । सन् १६३४के नं० ३५२ लेखसे यह प्रगट है कि इसको देवाट् बेलगोला भी कहते हैं । बेलका अर्थ श्वेत, कोल या गोलका अर्थ सरोवर है । ऐसा श्वेत सरोवर ग्रामके मध्य में है । शिलालेख नं ० ६७ ता० ११२९ और नं० २५८ ता० १४३२ में धवल सरस या धवल सरोवर नाम आया है । करीब सन् ६५० के शिलालेख नं ० ३१ में बेलगोला है व करीब सन् ८०० के लेख नं० ३५ में वेलगोला शब्द है । सन् १९४९ के लेख नं ० ३३३ व ३४५ में व नं० ३९७ में इस नगरको गोम्मटपुर कहा है । नं० ३४४ व ३४५ आदिमें तीर्थ कहा है व ३५५ - ३५६ व नं० ४८१ - ४८२ सन् १८५७-१८५८ में इसे दक्षिण काशी लिखा है । यहां दो पहाड़ी हैं - बड़ीको दोहावे या विव्यगिरि व छोटीको चिक्कबेट्ट या चंद्रगिरि कहते हैं | चंद्रगिरिपर सबसे प्राचीन लेख हैं- सन् १८३० के लेख नं० ३५४ के अनुसार यहां सर्व ३२ जिनमंदिर हैं उनमें से श्री गोम्मटस्वामी मंदिरको लेकर आठ बड़े पर्वतपर व सोलह छोटे पर्वतपर तथा आठ ग्राम में है । J चिक्कबेट्ट या चन्द्रगिरि । यह पहाड़ी समुद्रकी तरहसे ३०१२ फुटके करीब ऊंची है। पुराने लेखों में जैसे नं० १, ११, २२, ७५, ९.३, ११४में इस
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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