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________________ [ १७९ मदरास व मैमूर प्रान्त | फिर यह लेख है कि कुरिगहछीके गौड़ोंने श्रीपार्श्वदेवकी वस्ती बनवाई | (२०) नं० १४७ करीब ९०० ई० । क्यातनहल्ली में ग्रामके दक्षिण जैनमंदिरके पड्डी खेत में एक पाषाणपर । इसमें कथन है कि श्रवणबेलगोलाके कबप्पु पर्वतपर श्रीमुनि भद्रबाहु और चन्द्रगुप्त के चरणचिह्न अंकित हैं । कुवलाल नगर, नंदगिरिके स्वामी गंगकुल तिलक श्रीमत सत्यवाक्य कौंगुणीवर्मा धर्म महाराजाधिराज श्रीमत् परमानदी एरयधरसने परमानदी पाषाण जैनमंदिर के लिये श्रीकुमारसेन भट्टारक जैन मुनिकी सेवामें दान दिया । (२१) नं० १४८ सन् ९०१ ई० रामपुरा में कावेरी नदी के उत्तर तट गौतम क्षेत्रके सामने सिगदी गौड़के पड्डी खेत में एक पाषाण - जिसपर श्रीमुनि भद्रबाहु और चंद्रगुप्तके चरणचिन्ह अंकित हैं उस कबप्पपर्वतके स्वामी श्री सत्यवाक्य परमानदीने अपने श्री राज्यके चौथे वर्ष श्रीवरमतिसागर पंडित भट्टारक जैन मुनिके उपदेशसे अन्नथदेवकुमार और धोराने वाननहल्ली ग्राम खरीदकर श्री सिंगकी सेवामें अर्पण किया । (२२) मांड्य ता० नं० ३४ करीब ११७० ई० । हुल्लेगेरिपुर में वासव मंदिर के सामने स्तम्भपर एक जैन साधुके तपके स्मरमें जिनचंद्रने स्मारक स्थापित किया। एक संस्कृत श्लोक लिखा है आसीत् संयमिना पृथ्व्यां होमेनान्यन्महातपः । तत्शंसिना शिलास्तम्भो जिनचन्द्रेण निर्मितः ॥ (२३) नं० ५० सन् १९३० अबलवादी (कया हुबली) पर चौहद्दीकी भीतके पास । होसाल विष्णुवर्द्धन के राज्य में मूलसंघी
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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