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________________ [ १६७ मदरास व मैसूर प्रान्त । करियप्प दंडनायकने जब वह नरसूनाडपर शासन कर रहे थे तब जैनमंदिरको दान किया । (२) नं० ९४ सन् ५५० ? इसी वेगूर ग्राम में एक खंभेपर - श्रीमत् नागत्तरकी कन्या तोन डब्वेने समाधिमरण किया । तालुका चिन्नपाटन - ( ३ ) नं० ७० सन् १०० १ बेरूर ग्राम में एक पाषाणपर लेख है उसका भाव है कि संदिगवाते वंशके श्रीचंद्रसेन मुनिके शिष्य नागसेन गोरने किरि कुन्ड़ में समाधिमरण किया । यहां सन् १८९१ में १९७८ जेनी थे । (२) कोलार जिला - यहां सन् १८९१ में ८९६ जैनी थे। (१) नोन मंगल - मालरके दक्षिण - यहां सन् १८९७ में एक जैनमंदिर की नींममें थी और ५वीं शताब्दी के खुदे हुए ताम्रपत्र व कुछ मूर्तियें तथा कुछ वाने मिले थे । (२) नंदिडुग - कोलार से पश्चिम एक किले सहित पहाड़ी-यह ४८५१ फुट ऊंची है । यह किला दूसरीसे ११वीं शताब्दी तक गुंगराजाओं का, जो जैन थे, दृढ़ आश्रय स्थान था । उनकी उपाधि थी नंदगिरिके स्वामी । यह बंगलोरसे उत्तर ३१ मील है । इसके उत्तर पूर्व में गोपीनाथ पहाड़ी है, इसपर एक प्राचीन जैन शिलालेख है जिसमें प्रथम तीर्थंकर श्रीऋषभदेवकी भक्ति में गंग राजाने दान किया है ऐसा लेख है । एपीग्रैफिका करनाटिका जिल्द १० में यहांके कुछ जैन शिलालेख हैं, वे नीचे प्रमाण हैं तालुका मालुर - (१) नं० ७२ सन् ४२५ ई० । नोनमंगलमें
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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