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________________ (१५) काममें लाई गई हैं। मद्रास प्रान्तमें जैनियोंकी संख्या अब केवल २८०००के लगभग है सो भी तितर बितर और अधिकतर धार्मिकज्ञानसे शून्य है। अपनी प्राचीन अवस्थाका कुछ परिचय प्राप्त कर यह सोती हुई समाज कुछ सचेत हो, उसके रक्तमें कुछ नया जीवन संचार हो, यही अभिप्राय ब्रह्मचारीजीका इन पुस्तकोंके संकलित करनेका है। इस पुस्तकके अवलोकनसे अनेक ऐतिहासिक समस्यायें उपस्थित होती हैं। उदाहरणार्थ कलिंगदेशके गंगवंश और मैसूर प्रान्तके गंगवंशके बीच सम्बंध, उनका इतिहास व उत्पत्ति, जिसका कुछ उल्लेख प्रस्तुत पुस्तकके पृ० ७, १४६ व २९७में आया है, विचारणीय प्रश्न हैं। ब्रह्मचारीजीका अनुमान है कि जिस कोटिशिलाका वर्णन पद्मपुराण, हरिवंशपुराण व निवाणकाण्ड आदि जैनग्रन्थों में आया है वह गंजम जिलेका मालती पर्वत ही है (ए. १०-१२) इसपरसे मेरा अनुमान होता है कि समुद्रगुप्तके अलाहाबादवाले शिलालेखमें जो ‘गिरि किट्टर' का उल्लेख है सम्भव है वह भी यही गिरि हो। ये सब प्रश्न बर रोचक और महत्वपूर्ण हैं। ब्रह्मचारीजीकी इस पुस्तकको पढ़कर इतिहास प्रेमियों और जैनी भाइयोंका ध्यान इन बातोंकी ओर आकर्षित हो और वे उत्साहपूर्वक अपने पूर्व इतिहास व प्राचीन स्मारकों का महत्व समझ कर उनके अध्ययनमें दत्तचित्त हों व इतिहासके मंकलनमें भाग ले यह हमारी हार्दिक अभिलाषा है । अमरावती। किंग एडवर्ड कालेज हीरालाल। निर्वाणचतुर्दशी २४५३
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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