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________________ १२६] प्राचीन जैन स्मारक । जैन वंट-इन्द्र पुमारी या उपाध्याय वंश है जिनके दो भाग हैंकन्नड़ पुजारी और तलुव पुनारी। जिनमें कन्नड़वाले बाहरसे आए हए है। इनमें दाय भागके नियम साधारण ब्राह्मणों के समान हैं। जैन बंट अब व्यापार करते हैं। पुगतत्व-पुरातत्त्वकी विशेष वस्तु इस दक्षिण कनड़ामें जैनधर्मके स्मारक हैं जो इस जिलेमें बहुत प्रसिद्ध हैं। बहुत बढ़िया स्मारक कारकल, मूडबिद्री व येनूरमें मिलते हैं जहां बहुत समयतक जैन राजाओंने राज्य किया है । इन राजाओंमें सबसे अधिक प्रसिद्ध कारकलके भैरारसा ओडियर थे । इस वंशके लोग पूर्वीय घाटसे आए थे। उसी पश्चिम तटके समान पाषाणके मकान उन्होंने बनवाए । फर्गुसन साहब कहते हैं कि जैन मंदिरोंका शिल्प द्राविड़ या दूसरे दक्षिणी भारतके ढंगका नहीं है किन्तु अधिकतर नेपाल और तिव्वतसे मिलता है । इसमें संदेह नहीं यह सब कारीगरी वैसी ही लकड़ीकी है जैसे कि प्राचीन समयमें थी। यहां स्मारक तीन प्रकारके हैं । (१) पहले तो कोट है जिनके भीतर विशाल मूर्तिये हैं। ऐसी एक मूर्ति यहां कारकलमें दूसरी येनूरमें है। कारकलकी मूर्ति ४ १ फुट ५ इंच ऊँची है तथा यह एक पहाड़ीपर खड़ी है, जिसके सामने सुन्दर झील है । दृश्य बहुत बढ़िया है । यह श्री गोमटम्वामीकी मूर्ति है जो श्रीऋषभदेव प्रथम जैनतीर्थकरके पुत्र थे। ऐमी ही मूर्ति मैसूरमें श्रवणबेलगोलामें है। कारकलकी मूर्तिका लेख बताता है कि यह मूर्ति सन् १४३१ में रची थी। (२) दूसरे प्रकारकी इमारतें जैन वस्ती या मंदिर हैं । ये मंदिर जिलेभरमें पाए जाते हैं जिनमेंसे सबसे बढ़िया मूडबिद्री में हैं । यहां
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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