SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 142
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०८] प्राचीन जैन स्मारक । नीचे ग्राम वसता है, ग्रामका नाम नरसिंहगुडी पो० उत्तमगुड़ी है। पर्वतपर साफ चट्टानें ध्यान करने योग्य हैं। ऊपर लिखित ८ मूर्तियोंका वर्णन नीचे प्रकार हैं-इनका दर्शन करके हमको बहुत आनन्द हुआ । हमने इस गुफाके भीतर बैठकर जाप दी और उन प्राचीन ऋषियोंको म्मरण किया जिन्होंने इस दक्षिण मदुराकी तपोभूमिपर ध्यान किया था । १ पल्यंकासन छत्र सहित ॥ हाथ ऊंची १-कायोत्सर्ग श्री पार्श्वनाथ यक्ष सहित १ हाथ ऊंची । १ भाई चरणोंको नमस्कार कर रहे हैं। १-कायोत्सर्ग ॥ हाथ ऊंची दो भक्त सहित । १-पल्यंकासन छत्र सहित ॥ हाथ ऊंची । १-- देवीको मूर्ति ॥ हाथ १-पल्यंकासन ॥ हाथ ऊंची। इस ग्राममें ऐसा प्रसिद्ध है कि यहां गजेन्द्रने मोक्ष पाई। माघ मासमें मेला भी भरता है । यह शायद गनकुमार मुनि हों या दूसरे गजेन्द्र मुनि हों। ऊपर पर्वतपर जानेसे १ गुफा बड़ी सुंदर लेटने योग्य मिलती है । यह १४ हाथ लम्बी चौड़ी व २ हाथ ऊँची होगी। आगे पर्वतका मार्ग कठिन होनेसे न जासके । यहांके शिलालेखोंका भाव नीचे प्रमाण है-- एपिग्राफी रिपोर्ट १९०५से यह हाल विदित हुआ। नं० ६७-इस मूर्ति (त्रिमणी) को एणदिनादीने बिराजमान किया....अनिपनकी ओरसे ।
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy