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________________ १०६] प्राचीन जैन स्मारक । कि इस कुरल काव्यके कर्ता जैनाचार्य श्रीकुन्दकुन्दस्वामी थे। इस राजाके दरबारमें एक तामील स्त्री कवि अनवैय्यार थी जिसने राजाकी प्रशंसामें कविताएं बनाई हैं। पांड्यकी राज्यधानी उत्तर मथुराके समान नानमादक किंदल थी । पांड्योंका राज्यचिह्न मत्स्य था जैसा उनके सिकोंपर मिलता है । पांड्यवंश प्राचीनकालमें बहुत प्रतिष्ठित था । ग्रीक और रोममें इनका वर्णन मिलता है। प्राचीनकालमें इस राज्यमें जैनधर्म बहुत फैला हुआ था। ( Pandya Kingdom can boost of respectable inliguity The prevailing religion in early times in their Kingdom was Jain creed. Gazetter 1906. ) १०वीं शताब्दीमें यह जिला चोलोंके हाथमें आया। फिर ३०० वर्ष पीछे पांडवोंने इसको ले लिया। पश्चात विजयनगरके फिर नायक राजाओंके हाथमें आया । पुरातत्त्व-यहां इतिहाससे पूर्वके dolmens समाधिस्थान मिलते हैं। पांड्य रानाओंके नीचे रोमके सिपाही नौकर थे । रोमके व बौद्धचिह्न के सिके पाए गए हैं। जैन लोग-१९०१की जनसंख्यामें कुल जिलेभरमें एक भी जैन नहीं मिला किन्तु इस बातके बहुत प्रमाण हैं कि प्राचीनकालमें इस धर्मके माननेवाले मदुरामें बहुत प्रभावशाली थे (were un influential community in Madura)वे बड़े बलिष्ठ थे। बहुतसी मूर्तियां व लेख जैनियोंके इस जिलेमें मिलते हैं । अधिकतर जैन स्मारक नीचे स्थानोंपर हैं____(१) मदुरा तालुकाके अनइमळई और तिरुप्पा लइयममें (२) पालनी ता० में ऐवरमलई में (३) पेरियाकुलम् ता० में उत्त
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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