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________________ मदरास व मैमूर प्रान्न । [१०१ (४) नं० सी ६७७ से ५८० वहीं चट्टानसे गुफाओं तकके चित्र । (५) नं० ५८६ से ५८९-मुत्तुपट्टीमें मैन मूर्ति और गुफाओंके चित्र । (६) नं० ५९४ से ५९७-कुरुनालक्कुदीकी पहाड़ी पर जैनमूर्ति व गुफाओंके फोटो। - - (१७) त्रिचिनापली जिला। यहां ३६३२ वर्गमील स्थान है। चौहद्दी यह है-पूर्वमें तन्मोर, उत्तरमें दक्षिण अर्काट और मालेमा, पश्चिममें कोयम्बटूर और मदुरा, दक्षिणमें पुड्डक्कोट्टाई। ___ इतिहास-इसका इतिहास बहुत प्राचीनकाल तक जाता है। चोल राजाने की राज्यधानीका वर्णन अशोकके शिलालेखमें है जो सन् ई०से ३ शताब्दी पूर्वक है । यह राज्यधानी उरदपूरपर थी जो त्रिचिनापली नगरके शहरका भाग है। दूसरी शताब्दीके टोलिमीने भी इसका वर्णन किया है। ११वीं शताब्दीमें चोलोंकी राज्यधानी उदझ्यार पालइयन ता०के गंगई कुन्दपुरम्में थी ! यहां सुन्दर मंदिर व सरोवरांके अवशेष अब भी दिखलाई पड़ते हैं । १३वीं शताब्दीके मध्यमें द्वारसमुद्रके होयसालोंने अधिकार किया। पीछे तुर्त ही मदुराके पांड्य राजाओंका शासन हुआ जो १४वीं शता० तक रहा । सन् १३७२में विजयनगर राजाओंके हाथमें आया । १६वीं शताब्दीमें मदूरके नायकोंने राज्य किया। इसका स्थापित कर्ता विश्वनाथ था जिसने त्रिचिनापलीका किला व नगरका
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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