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________________ (११) दीवालकी चित्रकारीमें जैनियोंपर शैवों और वैष्णवों द्वारा किये गये अत्याचारों की कथा अंकित है । जैनधर्म तामिल देशमें बहुत क्षीण अवश्य होगया किंतु कुछ बातोंमें वहांके दैनिक जीवन और कला - कौशलपर उसका अक्षय प्रभाव पड़ गया है । यह प्रभाव एक तो अहिंसा सिद्धांत का है जिसके कारण शैव और वैष्णव धर्मोसे भी पशुयज्ञका सर्वथा लोप होगया । दूसरे शेव और वैष्णवोंने बड़े२ मंदिर बनाना व अपने साधु: पुरुषों की मूर्तियां बिराजमानकर उनकी पूजा करना जैनियोंसे ही सीखा है। ये बातें जैनधर्ममें बहुत पहले से ही थीं और शेवों व वैष्णवोंने इन्हें जैनधर्मसे लिया । 4 पाण्ड्य और पल्लव देशों में राजाश्रयसे विहीन होकर व शैव जैनियों को श्रवणबेलगोल और वैष्णवों द्वारा सताये जाकर जैनियोंने गंगनरेशका आश्रय । अपने प्राचीन स्थान श्रवणबेलगोलमें आकर गंगनरेशोंका आश्रय लिया । गंगवंशका राज्य मैसूर प्रांत में ईसाकी 1 लगभग दूसरी शताब्दिसे ग्यारहवीं शताब्दि तक रहा। मैसूर में जो आजकल गंगडिकार नामक कृषकों की भारी संख्या है वे गंगनरेशों की ही प्रजाके वंशज हैं। अनेक शिलालेखों व ग्रन्थों में उल्लेख है कि गंग राज्यकी नीव जैनाचार्य सिंहनंदि द्वारा डाली गई थी। तभी से इस वंश में जैनधर्मका विशेष प्रभाव रहा। इसी वंशके सातवें नरेश दुर्विनीतके गुरु पूज्यपाद देवनंदि थे। गंगनरेश मारसिंहने अपने जीवन के अंतिम भाग में अजितसेन भट्टारकसे जिन दीक्षा लेकर समाधिमरण किया था । ये नरेश ईसाकी दशवीं शताब्दि में हुए हैं । पांड्य और पल्लव प्रदेशों में आकर जैनियोंने अधिकतर इसी समय में गंग नरेशका आश्रय लिया जिससे गंग साम्राज्य में जैनियोंका अच्छा
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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