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________________ भावना को न्याय प्रणाली में 'चिन्ता', वेदान्त में निदिध्यासन, योग में ध्यान बार कायकत्र में साधारणीकरण व्यापार, व्यापना, मादि के रूप में चिषित किया गया है। माध्यात्मिक क्षेत्र में भावना साधन मात्र है पर काव्य के क्षेत्र में महान भार साध्य दोनों है । दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि रहस्य भाभी को सम्बन्ध पात्मिक-प्राध्यात्मिक साधना से है। पर उसकी भावात्मक भावना काव्यात्मक क्षेत्र में मा जाती है। वाद के साथ रहस्य (रहस्यवाद) शब्द का प्रयोग हिन्दी साहित्य में सर्वप्रथम प्राचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने सन् 1927 में सरस्वती पत्रिका के मई मंक में किया था। लगभग इसी समय अवधनारायण उपाध्याय तथा प्राचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने भी इस शब्द का उपयोग किया। जैसा ऊपर हम देख चुके हैं, प्राचीन काल में 'रहस्य' जैसे शब्द साहित्यिक क्षेत्र में पा चुके थे पर उसके पीछे अधिकांगतः अध्यात्मरस से सिक्त साधना-पथ जुड़ा हुआ था। उसकी अभिव्यक्ति भले ही किसी भाष मोर भाषा में होती रही हो पर उसकी सहजानुभूति सार्वभौमिक रही है। जहां तक उसकी अभिव्यक्ति का प्रश्न है, उसे निश्चित ही साक्षात्कार कर्ता गूगे के गुड़ की भाति पूर्णत: व्यक्त नहीं कर पाता । अपनी अभिव्यक्ति में सामर्थ्य लाने के लिए वह तरह-तरह के साधन अवश्य खोजता है। उन साधनों में हम विशेष रूप से संकेतमयी और प्रतीकात्मक भाषा को ले सकते हैं । ये दोनों साधन साहित्य में भी मिल जाते हैं। यद्यपि 'रहस्यवाद' जैसा शब्द प्राचीन भारतीय योग-साधनामों में उपलब्ध नहीं होता, पर 'रहस्य' शब्द का प्रयोग अथवा उसकी भूमिका का विनियोग वहां सदव से होता रहा है । इसलिए भारतीय साहित्य के लिए यह कोई नवीन तथ्य नहीं रहा। पर्यवेक्षण करने से प्राधुनिक हिन्दी साहित्य में 'रस्यवाद' शब्द का प्रयोग पाश्चात्य साहित्य के प्रग्रेजी शब्द Mysticism के रूपान्तर के रूप में प्रयुक्त हमा है । इस (Mysticism) शब्द का प्रयोग भी अंग्रेजी साहित्य में सन् 1900 के पास-पास प्रारम्भिक हुमा ।' उसकी रचना ग्रीक भाषा के Mystikes शब्द से होनी चाहिए। जिसका अर्थ किसी गुह्य ज्ञान प्राप्त करने के लिए साधनारत दीक्षित शिष्य है। उस दीक्षित शिष्य द्वारा व्यक्त उद्गार अथवा 1. Bonquet, A., C., Comparative Religion, Pelican Series 1953, P. 286, 2. The Concise Oxford Dictionary, P. 782 (sq. Mystic), Oxford, 1960 ३. देखिये, मनन्दल का हिन्दी शब्द कोश.
SR No.010130
Book TitleMadhyakalin Hindi Jain Sahitya me Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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