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________________ विणए बन्दवि पंचगुरु, मोह-महातम-तोगणियर। साह हिन हावहि खूनडिय युवउ पभणइ पिड मोडिषि कर ॥1 फागु, बैलि, बारहमासो पौर विवाहलो साहित्य : फागु में भी कवि अत्यन्त भक्तविभोर और आध्यात्मिक संत-सा दिखाई देता है । इसमें कवि तीर्थकर या प्राचार्य के प्रति समर्पित होकर भक्तिरस को उड़ेलता है । मलधारी राजशेखर सूरि की नेमिचन्द फागु (सं. 1405), हलराज की स्थूलिभद्र फागु (सं. 1409), सकलकीति की शान्तिनाथ फागु (सं. 1480), सोमसुन्दर सूरि की नेमिनाथ वरस फागु (सं. 1450), ज्ञानभूषण की मादीश्वर फागु (1560) मालदेव की स्थूलभद्र फागु (सं. 1612), वाचक कनक सोम की मंगल कलश फागु (सं. 1649), रनकीर्ति, धनदेवर्गारण, समधर, रत्नमण्डन, रायमल्ल, अंचलकीर्ति, विद्याभूषण आदि कवियों की नेमिनाथ तीर्थकर पर आधारित फागु रचनाएं काव्य की नयी विधा को प्रस्तुत करती हैं जिसमें सरसता, सहजता और समरसता का दर्शन होता है । नेमिनाथ और राजुल के विवाह का वर्णन करते समय कवि अत्यन्त भक्तविभोर और आध्यात्मिक संत-सा दिखाई देता है । इसी तरह हेमविमल सूरि फागु (सं 1554), पार्श्वनाय फागु (सं 1558), वसन्त फागु, सुरंगानिध नेमि फागु, अध्यात्म फागु प्रादि शताधिक फागु रचनाएँ प्राध्यात्मिकता से जुड़ी हुई हैं। ___ इनके अतिरिक्त फागुलमास वर्णन सिद्धिविलास (सं. 1763), अध्यात्म फागु, लक्ष्मीबल्लभ फागु रचनाओं के साथ ही धमाल-संज्ञक रचनाएं भी जैन कवियों की मिलती है जिन्हें हिन्दी में धमार कहा जाता है। अष्टछाप के कवि नन्ददास और गोविन्ददास आदि ने वसंत और टोली पदों की रचना धमार नाम से ही की है। लगभग 15-20 ऐसी ही धमार रचनाएं मिलती हैं जिनमें जिन समुद्रसूरि की नेमि होरी रचन। विशेष उल्लेखनीय है । बेलि साहित्य में वाछा की चङगति वेलि (1520 ई०), सकलकीति (16वीं शताब्दी) की कर्पूरकथ बेलि, महारक वीरचंद की जम्बूस्वामी बेलि (सं, 1690), ठकुरसी की पंचेन्द्रिय बेलि (सं. 1578), मल्लदास की क्रोषबेलि (सं. 1588), हर्षकीर्ति की पंचगति बेलि (सं. 1683), ब्रह्म जीवंधर की गुणणा बेलि (16वीं शताब्दी), अभयनंदि की हरियाल बेलि (सं. 1630), कल्याणकीर्ति की लघु-बाहुबली बेलि (सं. 1692), लाखाचरण की कृष्णरुक्मणि बेलि टब्बाटीका (सं. 1638), तथा 6वीं शती के वीरचन्द, देवानंदि, शांतिदास, धर्मदास की क्रमशः सुदर्शन बेलि, जम्बूस्वामिनी बेलि, बाहुबलिभी बेलि, भरत बेलि, लघुबाहुबलि केलि, गुरुबेलि और 17वीं शती के ब्रह्मजयसागर की मल्लिदासिमी बेलि व साह लोहठ की षड्लेश्यावेलि __1. विनयचन्द्र की चूनड़ी, पहला ध्रुवक ।
SR No.010130
Book TitleMadhyakalin Hindi Jain Sahitya me Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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