SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इहि विधि अनेक दुष धरि, कमठ जीव उपसर्ग किय । तिहुं लोक वंद जिनचन्द्र प्रति धूलि डाल निज सौस लिय। हिन्दी गैन साहित्य में पौराणिक प्रबन्ध काव्य की धारा मगाम पाटनी शती से प्रारम्भ हुई और मध्यकाल पाते-माते उसमें और मषिक वृद्धि हुई । कलियों ने तीर्थंकरों, चक्रवतियों, बारायणों आदि महापुरुषो के परितों को जीवन-निमाण के लिए पथिक उपयोगी पाया और फलतः उन्होंने अपनी प्रतिमा को यहां प्रस्फुटित किया। यद्यपि उनमें जन धर्म के सिद्धान्तों को स्पष्ट करने का विशेष प्रयत्न किया पया है पर उससे कथा प्रवाह में कहीं बाधा नहीं दिखाई देती । भावव्यंजना संपाद, परमापनि, परिस्थिति संयोजन आदि सभी तत्व यहां सुन्दर हंम से प्रस्तुत किये गये हैं। जिन्हें प्राज खण्डकाव्य कहा जाता है उन्हें मध्यकाल में संधि काव्य की संज्ञा दी गई। संधि वस्तुतः सन के अर्थ में प्रयुक्त होता पा पर उत्तरकाल मैं एक सर्ग वाले खण्ड काथ्यों के लिए इस शब्द का प्रयोग होने लमा प्रमुख जैन संधि काव्यों में उल्लेखनीय काव्य है-जिन प्रभसूरि का अमस्थि संधि (सं. 1297) और ममणरेहा संषि, जयदेव का भावना संधि विनय चन्द का आनन्द सधि (14 वीं शती), कल्याण तिलक का भृवापुत्र संधि (सं. 1550), चारुचन्द्र का नन्दन मणिहार संषि, (सं. 1587), संयममूर्ति को उदाह राजर्षि संधि (सं 1590), धर्ममेरु का सुख-दुःख विपाक संधि (सं. 1604), गुणप्रभसूरि का चित्रसभूति संधि (सं. 1608), कुशल लाभ का जिनरक्षित संधि (सं. 1621), कनकसोम का हरिकेशी संधि (सं. 1640), गुणराज का सम्मति संधि (सं. 1630), चारित्र सिंह का प्रकीर्णक संधि (सं. 1631), विमल विनय का अनाथी संधि (सं. 1647), विनय समुद्र का नमि सधि(सं.17 वीं शती), गुणप्रभ सूरि का चित्र संभूति संधि (सं. 1759) प्रादि । ऐसे पचासों संधि काव्य भण्डारों में बिखरे पड़े 2. चरित काश्य: हिन्दी गैन कवियो ने जैन सिद्धान्तों को प्रस्तुत करने के लिए महापुरुषों के चरित का शाख्यान किया है । कहीं-कहीं व्यक्ति के किसी गुण-अवगुण को लेकर भी चरित ग्रन्थों की रचना की गई है जैसे ठकुरसी का कृष्ण चरित्र । इन चरित ग्रन्थों में कवियों ने मानव की सहज प्रकृति और रागादि विकारों का सुन्दर वर्णन किया है । मध्यकालीन कतिपय चरित काव्य इस प्रकार है सघारु का प्रद्युम्नचरित (सं. 1411), ईश्वरसूरि का ललितांग बस्ति (सं. 1561), ठकुरसी का कृष्ण चरित (सं. 1580), जयनीति का भवदेवचरित (सं. 1661), गौरवास का यशोधर चरित (सं. 1581), मालदेव का भोजप्रबन्ध 1. पायपुराण, 8. 23. पृ. 65.
SR No.010130
Book TitleMadhyakalin Hindi Jain Sahitya me Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy