SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ____महायानी सम्प्रदाय में इस प्रकार क्रान्तिकारी परिवर्तन हये । शान्त सम्प्रदाय का उस पर विशेष प्रभाव पड़ा । तदनुसार तंत्र, मंत्र, यंत्र, मुसा, भासन, चक्र, मंडल, स्त्री, मदिरा तथा मांस मादि वाममार्गी पाचरण बौद्ध धर्म में प्रचलित हो गये। शिव की पत्नि शक्ति की तरह प्रत्येकबुद्ध की भी शक्ति म पनि कल्पित हुई। इसकी तांत्रिक साधना में मैथुन को भी अध्यात्म से सम्बद्ध कर दिया गया। बंगाल में इसी को सहजमार्ग कहा जाता था इस तांत्रिक साधना ने बौद्ध धर्म को अप्रिय बना दिया। इसी समय मुसलमानों के प्राक्रमणों से भी बौद्ध धर्म को कठोर पक्का लगा । साथ ही नन्दिवर्धन पल्लवमल्ल के समय शंकराचार्य के प्रभाव से बौद्ध धर्म का निष्कासन हो गया। इन सभी कारणों से बौद्ध धर्म 11वीं, 12वीं शताब्दी तक अपनी जन्मभूमि से समाप्तप्राय हो गया। उत्तरकाल में एक तो वह विदेशों में फूला-फला और दूसरे भारत में उसने रूपान्तरणकर संतों को प्रभावित किया। मध्यकालीन हिन्दी साहित्य पर बौद्ध धर्म का भी प्रभाव पड़ा है। मध्यकाल तक पाते-पाते यद्यपि बौद्ध धर्म मात्र ग्रन्थों तक सीमित रह गया था, पर बौद्धतर धर्म और साहित्य पर उसके प्रभाव को देखते हुए ऐसा लगता है कि बौद्ध धर्म को पूरी तरह से नष्ट नहीं किया जा सका। महाराष्ट्र के प्राचीन संतों पर और हिन्दी साहित्य की निर्गुणधारा के सन्तों पर इसका प्रभाव स्पष्ट रूप में देखा जा सकता है। डा. त्रिगुणायत ने मध्यकालीन धार्मिक परिस्थितियों को दो भागों में विभाजित किया है-(1) सामान्य जनता में प्रचलित अनेक नास्तिक और प्रास्तिक पंथ पौर परतियां, (2) वे मास्तिक पद्धतियां जो उच्च वर्ग की जनता में मान्य थीं। इन धर्म पतियों के प्रवर्तक तथा प्रतिपादक अधिकतर शास्त्रज्ञ प्राचार्य लोग थे। मागे वे लिखते हैं, जगद्गुरू शंकराचार्य का उदय भारत के धार्मिक इतिहास में एक अत्यंत महत्वपूर्ण घटना है । उनके प्रभाव से सोया हुमा ब्राह्मण धर्म फिर एक बार जाग उठा । उसे उद्बुद्ध देखकर विलासप्रिय बौद्धधर्म के पैर उखड़ गये । शास्त्रज्ञ विद्वानों में उनका नाम कन्ह हो गया। समाज के नैतिक पतन का कारण बाम. मार्गीय दूषित बौर पद्धतियां ही थीं। मच्छा हुआ कि 11वीं शताब्दी के लगभग यवनों के प्रभाव से इन दूषित धर्मों के प्रति प्रतिक्रिया जाग्रत हो गयी और उत्तर भारत में माचरण प्रवण नाथ पंथ का तथा दक्षिण में वैष्णव और लिंगायत धादि पौ का उदय हो गया, नहीं तो भारत और भी अधिक दीनावस्था को पहंच मया होता । कबीर तथा उनके गुरु रामानन्द ने इस प्रतिक्रिया को और भी अधिक मूर्तरूप दिया। दूसरी पारा शास्त्रज्ञ प्राचार्यों की थी। इन प्राचार्यो का उदय शंकरा. चार्य की विचारधारा की प्रतिक्रिया के रूप में हुमा था। इन परवर्ती प्राचार्यों में रामानुजाचार्य, निम्बार्काचार्य, माध्वाचार्य तथा बल्लभाचार्य प्रमुख हैं । शंकराचार्य
SR No.010130
Book TitleMadhyakalin Hindi Jain Sahitya me Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy