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________________ 265 जायसी प्रन्तर्मुखी प्रक्रिया के विशेष धनी है। उन्होंने सिंहल गढ को हृदय की प्रतीक बनाकर उसमें परमात्मा का निवास बताया है । माया आदि जैसे तत्वों के कारण प्रियतम के उसे दर्शन ही नहीं हो पाते । रतनसेन दर्शन के लिए इतना तड़प उठता है कि सात पाताल खोजकर और सात स्वर्गो में दौड़कर पद्मावती को खोजने की बात करता है । साधक घनघोर तप और साधना करता है । तब कहीं प्रियतम के देश में पहुंच पाता है । जायसी ने उस देश का वर्णन किया है। जहां न दिन होता है न रात, न पवन है न पानी ।" उस देश में पहुंचकर प्रियतम से भेंट की प्रातुरता बढ़ जाती है। पर वह अपरिचित है और फिर इधर दुष्टों का घेरा है जिसे किसी तरह से साधक साध्य का साक्षात्कार करता है और उसके बाद afone विवाह की अवस्था होती है जिसका महत्व रहस्यवाद में बहुत प्रधिक है । रतनसेन और पद्मावती का विवाह ऐसे ही विवाह का प्रतीक माना गया है । इस विवाह का वर्णन यद्यपि भौतिक जैसा लगता है पर वह वस्तुत: है प्राध्यात्मिक ही है । वर-वधु की गांठ इतनी दृढ़ता से जुड़ जाती है कि वह भागे के भवों में भी नहीं छूट पाती | मंगलाचार होते हैं मन्त्र-पाठ पढ़ा जाता है और चांद-सूर्य का मिलन होता है 13 uttarfree faare के उपरान्त साधक साध्य के प्रति पूरी तरह से प्रारम समर्पण कर देता है। दोनो तन्मय हो जाते हैं। साधक-साध्य का मिलन भी प्राध्याfore मिलन है जिसे मानसरोवर खण्ड में चित्रित किया गया है। मिलन होते ही रतनसेन पद्मावती के चरण स्पर्श करता है । चरण स्पर्श करते ही वह ब्रह्म रूप हो जाता है । यही अवस्था रहस्यानुभूति की चरम अवस्था है । जायसी ने इसका वर्णन बड़ी सूक्ष्मता से किया है। रतनसेन अपने आप को पद्मावती के लिए सौंप देता है । उसका शरीर मात्र उसके साथ है। जीव पद्मावती में मिल गया । इसलिए दुःख-सुख जो भी होगा, वह शरीर को नहीं, जीव को होगा, रतनसेन के जीव को नहीं | पद्मावती ने रतनसेन को प्राश्वासन दिया कि जीवित प्रौर मरेगे तो साथ रहेंगे ।" यह तादात्म्य अवस्था का बहुत सुन्दर चित्रण है । रहेंगे तो साथ रहेंगे 1. जायसी ग्रन्थावली, पृ. 63. 2. वही, रतनसेन पद्मावती विवाह 3. 13 #1 वही, 4. बही, मानसरोवर खण्ड, पृ. 252 5. विवाह खण्ड, पृ. 126. वही, गन्धर्वसेन- मन्त्री खण्ड पू. 112.
SR No.010130
Book TitleMadhyakalin Hindi Jain Sahitya me Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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