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________________ 263 तथ्यों की भोर संकेत किया है । सूर्यचन्द्र साधना के प्रकाश में डॉ. त्रिगुणायत ने पद्मावत की कथा की अन्योक्तियों को इस प्रकार समझाया है-- (1) सिंहल दीप-सहस्रार कमल (2) मानसरोदक-ब्रह्मरन्ध्र (3) तोता-गुरु (4) रतनसेन-योगी साधक (5) नागमति-माया (6) पद्मावती-शुद्ध ज्योति स्वरूपी जीवात्मा जिसमें शिव शक्ति प्रतिष्ठित रहती है । (7) सात समुद्र-~~षट्चक्र और सतवां सहस्रार (8) मंडप-ब्रह्मरन्ध्र मे जीवात्मा परमात्मा का मिलन यहां रतनसेन एक साधक की आत्मा को व्यंजित करने वाला तत्व है जिसमें स्वयं की अनन्त शक्ति भरी हुई है। वह मन का प्रतीक है जो नागमति रूपिणी माया में प्रासक्त है । तोता रूप गुरु के मिल जाने पर उसकी शान बुद्धि जाग्रत हो जाती है और वह पद्मावत रूपी शुद्ध-बुद्ध शक्ति को प्राप्त करने का प्रयत्न करता है। साध्य के दर्शन में साधक के लिए भूख-प्यास की भी बाधा प्रतीत नही होती। उसका दर्शन दीपक के समान है जहां बह पंतग के समान भिखारी बन जाता है । प्रियतम का दर्शन मात्र ही साधक का अज्ञान दूर करने में पर्याप्त होता है। तोते रूपी गुरु के मुख से पद्मावती रूपी साध्य पुरुष का रूप वर्णन सुनकर रतनसेन रूपी साधक मूछित हो गया । उह उसके प्रेम से तड़पने लगा। संसार के माया जाल में फंसे रहने के कारण साधक साध्य का दर्शन नहीं कर पाता और यही उसके विरह का कारण होता है। अन्ततोगत्वा रतनसेन (साधक) 'दुनिया का धन्धा रूपिणी नागमती को छोडकर पदमावती रूपी परमात्मा को प्राप्त करने का प्रयत्न करता है। फिर भी उसका मन पूर्णतः परिष्कृत न होने से पतित हो जाता है और भव-सागर में डूबता उतराता रहता है । साधक को जब इस तथ्य का अनुभव होता है तब वह पश्चाताप करता है कि मैंने तो 'मोर-मोर' कहकर महंकार और माया सब कुछ गंवा दिया । पर परमात्मा (पद्मावती) का साक्षात्कार नहीं हुमा । वह 1. जायसी का पद्मावत, काव्य और दर्शन, पृ. 107. 2. जेहि के हिये प्रेम रंग जाया। का तेहि भूख नींद विसराया । जायसी ग्रंथ माला, पृ. 58.
SR No.010130
Book TitleMadhyakalin Hindi Jain Sahitya me Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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