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________________ 259 afruit प्रानन्द प्रादि जैसे शब्दों से प्रनट किया गया है। बौद्ध साहित्य में भी इसी प्रकार के साक्षात्कार की अनेक घटनाओंों और कथनों का उल्लेख मिलता है । कबीर ने 'राम रतन पाया रे करम विचारा', नैना बैन प्रगनेवरी,' 'लाप fruit मापे आप जैसे उद्धरणों के माध्यम से अनुभव की प्रावश्यकता को स्पष्ट किया है। उन्होंने अद्वैतवाद का सहारा लेकर तत्व का अनुभव किया । इस प्रनुभव में तर्क का कोई उपयोग नहीं । तर्क से श्रद्वैतवाद की स्थापना भी नहीं होती बल्कि प्रनेकस्व का सृजन होता है इसलिए कबीर ने प्राध्यात्मिक क्षेत्र में तर्क को प्रतिष्ठित करने वालों के लिए 'मोही मन वाला' कहा है ।" और 'खुले नैन पहिचानी हंसिहंसि, सुन्दर रूप निहारों" की प्रेरणा दी है। दादू ने भी इसी प्रकार से 'सो हम देख्या नॅन भरि सुन्दर सहज सरूप' के रूप में अनुभव किया ।" यह श्रात्मानुभव वृत्तियों के अन्तर्मुखी होने पर ही हो पाता है ।" इससे एक अलौकिक श्रानन्द की प्राप्ति होती है- प्रापहि आप विचारिये तव केता होय मानन्द रे ।" बनारसीदास ने कबीर और अन्य सन्तों के समान श्रात्मानुभव को शान्ति और आनन्द का कारण बताया है । अनुभूति की दामिनी शील रूप शीतल समीर 18 के भीतर से दमकती हुई सन्तापदायक भावों को चीरकर प्रगट होती है और सहज शाश्वत प्रानन्द की प्राप्ति का सन्मार्ग प्रदर्शित करती है ।" कबीर आदि सन्तों ने अात्मानुभव से मोहादि दूर अधिक स्पष्ट नहीं की जितनी हिन्दी जैन कवियों ने की। तो विश्वास है कि प्रात्मानुभव से सारा मोह रूप सघन करने की बात उतनी जैन कवि रूपचन्द का अन्धेरा नष्ट हो जाता 7. 1. 2. 3. 4. 5 दादूदयाल की दानी, भाग 1, परचा को अंग, 6. उल्टी चाल मिले परब्रह्म सो सद्गुरु हमारा - कबीर दिल में दिलदार सही अंखियां उल्टी करिताहि पृ. 156. उलटि देखो घर में जोति पसार - सन्तवानी संग्रह, भाग 2, पृ. 188. कबीर ग्रंथावली, पृ. 89. नाटक समयसार, 17. बनारसीविलास, परमार्थ हिन्डोलना, पृ. 5. 8. 9. कबीर ग्रंथावली, पृ. 241, पृ. 4 साखी, पृ. 5. वही, पृ. 318. कहत कबीर तरक दुइ सार्धं, ताकी मति है मोही, वही, पृ. 105. शब्दावली, शब्द 30. 93, 98, 109. ग्रंथावली, पृ. 145. चितैये - सुन्दर विलास,
SR No.010130
Book TitleMadhyakalin Hindi Jain Sahitya me Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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