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________________ 214 बनारसीदास ने जीवन को ग्यारह अवस्थानों में विभाजित किया है और प्रत्येक वस्था को अवधि दस वर्ष मानी है । भूषरदास ने वृद्धावस्था को जीर्णशीर्ण चरखे की उपमा देकर उस को श्रीर भी मार्मिक बना दिया -- चरखा चलता नाही (रे चरखा हुम्रा पुराना (वे ) 2 दादू ने कबीर और सूर के समान श्रवरण, नयन और केस की थकान की बात की पर उन्होंने शब्द- कपन का विशेष वर्णन किया- 'मुख तै शब्द विकल भइ वाणी" । भूधरदास ने तो दादू के चित्ररण को भी मात कर दिया जहाँ वे कहते हैं एक अन्य चित्ररण में उन्होंने शरीर की जीर्णावस्था का यथार्थ चित्रण देकर अन्त मे यह गति है । जब तक पछते हैं प्राणी' कहकर पश्चात्ताप की बात कही है । इसी प्रकार के पश्चात्ताप की बात दाबू ने 'प्रारण पुरिस पछितावण लगा। दादू मौसर काहै न जागा "" कहकर की और कबीर ने 'कहै एक राम भजन चिन बड़े बहुत बहुत संयान्त"" लिखकर उसे व्यक्त किया । दौलतराम ने सुन्दरदास के समान ही शरीर की अपवित्रता का वर्णन किया है। उन्होंने उसे " अस्थिनाल पलनसाजाल की लाल-लाल जल क्यारी" बताया मौर सुन्दरदास ने "हाथ पांव सोऊ सब हाड़न की गली है" कहा । " रसना तकली ने बल खाया, सो अब कैसे खुटं । शब्द सूत सुधा नहि निकसं घड़ी घड़ी पल टूट 14 शरीर की विनश्वरता के सन्दर्भ मे सोचते-सोचते साधक संसार की क्षणमगुरता पर चिन्तन करने लगता है । जैन-जनेतर साधको ने एक स्वर से जीवन को क्षणिक माना है । तुलसीदास ने जीवन की क्षणिकता को बड़े काव्यात्मक ढंग 5. 6. 7. 1. 2. हिन्दी पद संग्रह, पृ. 152. 3. दादू की वानी, भाग 2, पू. 94. 4. हिन्दी पद संग्रह, पृ. 152. वही, 158. 8. 9. बनारसीविलास, प्रास्ताविक फुटकर कवित्त, दादू की बानी, भाग 2, पृ. 94. कबीर प्रथावली, पृ. 346. दौलत जैन पद संग्रह, पृ. 11. पद 17 वां. संत वाणी संग्रह, भाग 2, पृ. 124. पृ. 12.
SR No.010130
Book TitleMadhyakalin Hindi Jain Sahitya me Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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