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________________ 204 ध्यान की पिचकारी से होली खेलते हैं। उस समय गुरु के वचन ही मदंग है, निश्चय व्यवहार नय ही ताल हैं, संयम ही इत्र है, विमल व्रत ही चौला है, भाव ही गुलाल है जिसे अपनी झोरी में भर लेते हैं, धरम ही मिठाई है, तप ही मेवा है, समरस से प्रानन्दित होकर दोनों होली खेलते हैं । ऐसे ही चेतन और समता की जोड़ी चिरकाल तक बनी रहे, यह भावना सुमति अपनी सखियों से अभिव्यक्त करती है चेतन खलो होरी ।। समता भूमि छिमा बसन्त में, समता प्रान प्रिया संग गौरी ॥1॥ मन को माट प्रेम को पानो, तामें करुना केसरधोरी, जान ध्यान पिचकारी भरि भरि, भाप में छारं होरा होरी ।।2।। गुरु के वचन मृदंग बजत हैं, नय दोनो, डफ ताल टकोरी. संजम प्रतर विमल व्रत चौवा, भाव गुलाल भर भर झोरी ।। परम मिठाई तप बहुमेवा, समरस पानन्द अमल कटोरी, द्यानत सुमनि कहें सखियन सो, चिरजीबो यह जुग जुग जोरी॥ इसी प्रकार कविवर भूधरदास का भी आध्यात्मिक होलो का वर्णन देखिये___ "महो दोऊ रंग भरे खेलत होरी ।।1।। मलख प्रमूरति की जोरी ॥ इनमे मातमराम रगीले, उतते सुबुद्धि किसोरी। या के ज्ञान सखा संग सुन्दर, वाके संग समता गौरी ।12।। सुचि मन सलिल दया रस केसरि, उदै कलस में धोरी । सुधि समझि सरल पिचकारी, सखिय प्यारी भरि भरि छोटी ॥3॥ सतगुरु सीख तान घर पद की, गावत होरा होरी। पूरव बंध प्रबीर उड़ावत, दान गुलाल भर झोरी ॥4॥ भूधर प्राज बड़े भागिन, सुमति सुहागिन मोरी। सौ ही नारि सुलछिनी जन मैं, जासौं पति ने रनि जोरी। 512 एक अन्य कृति में भूधरदास अभिव्यक्त करते हैं, कि उसका चिदानन्द जो अभी तक संसार में भटक रहा था, घर वापिस मा गया है। यहां भूधर स्वयं को प्रिया मानकर और चिदानन्द को प्रीतम मानकर उसके साथ होली खेलने का निश्चय करते हैं- "होरी खेलूगी घर पाये चिदानन्द ।" क्योंकि मिथ्यात्व की शिशिर समाप्त हो गई, काललब्धि का वसन्त पाया, बहुत समय से जिस अवसर की 1. हिन्दी पद संग्रह, पृ. 121. 2. वही, पृष्ठ 149.
SR No.010130
Book TitleMadhyakalin Hindi Jain Sahitya me Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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