SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 225
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 200 तुम्ह जिनवर देहि रंगाई हो, विनवड़ सषी पिया शिव सुन्दरी । अरुण अनुपम माल हो मेरो भव जलतारण चुनड़ी ||2|| समकित वस्त्र विसाहिले ज्ञान सलिल सग सेइ हो । मल पचीस उतारि के, दिढिपन साजी देइ जी || मेरी ||3|| बड़ जानी गरणधर तहा भले, परोसंग हार हो । शिव सुन्दरी के बयाह की, सरस भई ज्योंणार हो ॥30॥ मुक्ति रमरिण रंग त्यौ रमैं, वसु गुरणमंडित सेइ हो । अनन्त चतुष्टय सुष घरणां जन्म मरण नहि होइ हो ||32|| 6. प्राध्यात्मिक होली जैन साधकों और कवियों ने प्राध्यात्मिक विवाह की तरह प्राध्यात्मिक होलियों की भी सर्जना की है। इसको फागु भी कहा गया है। यहां होलियों और फागों में उपयोगी पदार्थों (रंग, पिचकारी, केशर, गुलाल, विवध वाद्य मादि ) को प्रतीकात्मक ढंग से अभिव्यंजित किया गया है। इसके पीछे आत्मा-परमात्मा के साक्षात्कार से सम्बद्ध श्रानन्दोपलिन्धि करने का उद्देश्य रहा है । यह होली अथवा फाग प्रागा रूपी नायक शिवसुन्दरी रूपी नायिका के साथ खेलता है । कविवर बनारसीदास ने 'मध्यातम फाग' में अध्यातम बिन क्यों पाइये हो, परम पुरुष को रूप | अट मांग घट मिल रद्यो हो महिमा अगम अनूप की भावना से वसन्त को बुलाकर विविध अंग-प्रत्यंगों के माध्यम से फाग खेली और होलिका का दहन किया 'विषम विरस' दूर होते ही 'सहज वसन्त' का श्रागमन हुआ । 'सुरुचि सुगषिता' प्रकट हुई । 'मन-मधुकर' प्रसन्न हुआ । 'सुमति कोकिला' का गान प्रारम्भ हुआ । पूर्व वायु बहने लगी । 'भरम-कुहर' दूर होने लगा । 'जड-वाडा' घटने लगा । मायारजनी छोटी हो गई । समरस-राशि का उदय हो गया । 'मोह-पंक की स्थिति कम हो गई। संशय- शिशिर समाप्त हो गया । शुभ - पल्लवदल' लहलहा उठे । 'प्रशुभ पतझर' होने लगी । 'मलिन - विषयरति दूर हो गई, 'विरति-बेलि' फैलने लगी, 'शशिविवेक निर्मल हो गया, विरता-अमृत हिलोरे लेने लगा शक्ति सुचन्द्रिका फैल गई, 'नयन-चकोर' प्रमुदित हो उठे, सुरति श्रग्निज्वाला' भभक उठी समकित सूर्य, उदित हो गया, 'हृदय-कमल' विकसित हुम्रा, 'सुयश-मकरन्द' प्रगट हो गया, दृढ़ कषाय हिमगिरी जल गया, 'निर्जरा नदी' में धारणाधार 'शिव-सागर' की प्रोर बहने लगी 1 1. श्री चूनरी, इसकी हस्तलिखित प्रति मंगोरा (मथुरा) निवासी प. क्ल्लभ राम जी के पास सुरक्षित है, प्रपभ्रंश और हिन्दी में जैन रहस्यवाद, पृ. 90
SR No.010130
Book TitleMadhyakalin Hindi Jain Sahitya me Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy