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________________ 171 सफलता मानते हैं। उसी से उनके तन-मन की माषि-व्याधि भी दूर हो जाती है'जनम सफलभयो भयौ सुकाज रे । तन की तपत टरी सब मेरी, देखत लोडए पास माज रे ।। लावण्य समय ने भगवान ऋषभदेव की वन्दना करते हुए उन्हें भवतारक भौर सुखकारक कहा है। श्री शान्तिरंग गरिण को पूर्ण विश्वास है कि पार्श्व जिनेन्द्र की वन्दना करने से प्रज्ञान ही नष्ट नहीं होता वरन् मनवांछित फल की भी प्राप्ति होती है पास जिणंद खइराबाद मंडण, हरष घरी नितु नमस्यं हो ॥ रोर तिमिर सब हेलेहि हरस्यू, मनवांछित फलवरस्यं ॥ कुशललाभ कवि सरस्वती की वन्दना करते हए उसे सुराणी, स्वामिनी और वचन विलासणी मानते हैं । वह समस्त संसार में व्याप्त एक ज्योति है। रामचन्द तीर्थंकर वर्धमान को प्रणाम करते हैं और लोकालोक प्रकाशक उनके स्तवन से मोहतम को दूर करते हैं-'प्रणामो परम पुनीत नर, वरधमान जिनदेव ।' कविवर बनारसीदास ने तीर्थंकर पार्श्वनाथ की अनेक प्रकार से स्तुति की है जिसमें भाव और भाषा का सुन्दर समन्वय हुआ हैं करम भरम जग तिमिर हरनखग, उरन लखन रग सिवमगदरसी । निरखत नयन भविकजल वरसत, हरखत अमित भविक जन सरसी।। मदन कदन-जिन परम धरम हित, सुमिरत भगति भगति सब डरसी। सजल-जलद तन मुकुट सपत फन, कमठ-दलन जिन नमत बनरसी ॥1॥ कविवर दौलतराम अपने प्राराध्य से अब दुःख को हरण करने की प्रार्थना करते हैं, और उनका मुणगान करते हुए कहते हैं कि हे परमेश, तुम मोक्षमार्ग दर्शक 1. हिन्दी पद संग्रह, पृ. 19. 2. वैराग्यविनती, जैन गुर्जर कविमो, प्रथम भाग. पृ. 71-78. 3. पार्वजिनस्तवन, खैराबाद स्थित गुटके में निबद्ध हस्तलिखित प्रति. 4. गोडी पाश्वनाथ स्तवनम्, जन गुर्जर कविप्रो, पहला भाग, पृ. 216. 5. सीताचरित, का. ना. प्र. प्रत्रिका का बारहवां वार्षिक विवरण, ऐपेन्डिक्स 2, पृ. 1261, बाराबंकी के जैन मन्दिर से उपलब्ध प्रति । 6. नाटक समयसार, मंगलाचरण, पृ. 2. क
SR No.010130
Book TitleMadhyakalin Hindi Jain Sahitya me Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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