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________________ सिव विशु सक्ति व पावह सिल पुणु सत्ति विहीणु । बोहि मि जाणहि सबहु-जाग दुरझाइ मोह विलीणु,बही 55॥ मुनि रामसिंह के बाद रहस्यात्मक प्रवृत्तियों का बल और विकास होता गया । इस विकास का मूल कारण भक्ति का उकया। इस भक्ति का परम उत्कर्ष महाकवि बनारसीदास जैसे हिन्दी गैस कवियों में देखा जा सकता है। नाटक समयसार, मोहविक-युट, (बनारसीदास) पापियों में उन्होंने भक्ति, प्रेम पौर प्रया के जिस समन्वित रूप को प्रस्तुत किया है वह देखते ही बनता है । 'सुमति' को पत्नी और बेतन को पति बनाकर जिस माध्यामिक बिरह को उकेरा है, वह सहणीय है। प्रात्मा रूपी पनि प्रौर परमात्मा पी पति के वियोग का भी वर्णन प्रत्यन्त मार्मिक बन पड़ा है। अन्त में प्रात्मा को उसका पति उसके घर मन्तरात्मा में ही मिल जाता है । इस एकत्व की अनुभूति को महाकवि बनारसीदास ने इस प्रकार परिणत किया है पिय मोरे घट मैं पिय माहि । जल तरंग ज्यों दुविधा नाहिं ।। पिय मो करता में करसूति । पिय ज्ञानी में ज्ञान विभूति ।। पिय सुख सागर में सुख-सींव । पिय सुख-मंदिर में शिव-नींव ।। पिय ब्रह्म मैं सरस्वति नाम । पिय माधव मो कमला नाम । पिय शंकर मैं देवि भवानि । पिय जिनवर मैं केवल बानि ॥1 ब्रह्म-साक्षात्कार रहस्यवादात्मक प्रवृत्तियों में अन्यतम है। जैन साधना में परमात्मा को ब्रह्म कह दिया गया है । बनारसीदास ने तादात्म्य अनुभूति के सन्दर्भ मे अपने भावों को निम्न प्रकार से व्यक्त किया है "बालक तुहं तन चितवन गागरि कूटि, मंचरा गो फहराय सरम गै छुटि, बालम |||| पिग सुधि पावत वन मे पैसिउ पेलि, छाड़त राज हगरिया भयउ प्रकेलि, बालम ।।"2112 रहस्य भावनात्मक इम प्रवृत्तियों के प्रतिरिक्त समग्र जैन साहित्य में, विशेषरूप से हिन्दी जैन साहित्य में और भी प्रवृत्तियां सहज रूप में देखी जा सकती है। वहां भावनात्मक मोर साधनात्मक दोनों प्रकार के रहस्यवाय उपलब्ध होते हैं। मोह· राग द्वेष मादि को दूर करने के लिए सत्गुरू पौर सत्संग की पावश्यकता तथा मुक्ति प्राप्त करने के लिए सम्यक् दर्शन-ज्ञान और चरित्र को समम्वित साधना की अभिव्यक्ति हिन्दी गैन रहस्यबादी कवियों की लेखनी से बड़ी ही सुन्दर, सरल 1. बनारसीविलास, पृ. 161. 2. वही, पृ. 228.
SR No.010130
Book TitleMadhyakalin Hindi Jain Sahitya me Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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