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________________ 131 में जो तस्य बाधा डालते हैं उनके प्रति रुचि बात कर सपना की घोर सर करता है । सामना में सद्गुरु का स्थान वही है जो पन्त का है। चैने अर्हन्त तीर्थकर, माचार्य, उपाध्याय और साधु को सद्गुरु मानकर उनकी उपासन्य स्तुति और भक्ति की है।' मोहादिक कर्मों के बने रहने के कारण वह 'बड़े आमनि से हो पाती हैं ।" कुशल लाभ ने गुरु श्री पूज्यकरण के उपदेशों को कोकिलकामिनी के गीतों में, मयूरों की थिरकन में और चकोरों के पुलकिन नयनों में देखा + उनके ध्यान में स्नान करते ही शीतल पवन की लहरें चलने लगती हैं। सकल जगत् सुपथ की सुगन्ध से महकने लगता है, सातों क्षेत्र सुधर्म से भरपूर हो जाता है । ऐसे गुरु के प्रसाद की उपलब्धि यदि हो सके तो शाश्वत सुख प्राप्त होने में कोई बाधा नही होगी सोमप्रभाचार्य के भावों का अनुकरण कर बनारसीदास ने भी गुरु सेवा को 'पायपच परिहारहि परहिं शुभपंथ पग' तथा 'सदा प्रवादित चित्त जुतारन तरन जग' माना है । सद्गुरु की कृपा से मिथ्यात्व का विनाश होता है । सुगति-दुर्गति के fares ra ! fafer-निषेष का ज्ञान होता है, पुण्य-पाप का अर्थ समझ में आता है, संसार-सागर को पार करने के लिए सद्गुरु वस्तुतः एक जहाज है । उसकी समानता संसार में और कोई भी नहीं कर सकता --- 'सदा गुरु ध्यान स्नानलहरि शीतल वहइ रे 1 कीर्ति सुजस विसाल सकल जग मह महइ रे । साते क्षेत्र सुठाम सुधमेह श्री गुरु पाय प्रसाद सदा सुख नीपजई रे । संपजइ रे ॥ 1. 2. कवि का गुरु अनन्तगुणी, निराबाधी, निरुपाधि, अविनाशी, चिदानंदमय मौर ब्रह्मसमाधिमय है । उनका ज्ञान दिन में सूर्य का प्रकाश और रात्रि में चन्द्र का प्रकाश है । इसलिए हे प्राणी, चेतो और गुरु की अमृत रूप तथा निश्चयव्यवहारनय 3. 4. मिथ्यात्व दलन सिद्धान्त साधक, सुकतिमारग जानिये । करनी प्रकरनी सुगति दुर्गति, पुण्य पाप बखानिये ॥ ससार सागर तरन तारन, गुरु जहाज जगमांहि गुरुसम कह 'बनारस', श्रौर कोउ न पेखिये ॥14 विशेखिये | बनारसीविलास, पंचपदविधान | हिन्दी पद संग्रह, रूपचन्द, पृ. 48. हिन्दी जैन भक्त काव्य और कवि, पृ. 117. बनारसीविलास, पु. 24.
SR No.010130
Book TitleMadhyakalin Hindi Jain Sahitya me Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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