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________________ 'ला ना सिखलाया । सातवेंने घोडे रथ हाथी आदि सवारियोंपर चढना सिखलाया। आठवें कुलकरने जो लोग अपने पुत्रका मुख देखनेसे भयभीत हुए थे उनका भय निवारण किया। नौवें कुलकरने पुत्रपुत्रियोंके नामकरणकी विधि बतलाई । दशवेने चन्द्रमाको दिखलाकर बच्चोंको क्रीडा करना सिखलाया । ग्यारहवेने पितापुत्रके व्यवहारका प्रचार किया अर्थात् लोगोंको सिखलाया कि यह तुम्हारा पुत्र है तुम इसके पिता हो । बारहवेंने नदी समुद्रादिकमें नाव जहाज आदिके द्वारा पारजाना तैरना आदि सिखलाया । तेरहवेंने गर्भ, मलके शुद्ध करने का अर्थात् स्नानादिकर्मका उपदेश दिया। चौदहवेने नाल काटनेकी विधि बतलाई। __ पश्चात् चौदहवें कुलकर श्रीनाभिगयकी मरुदेवी महाराणीके गर्भसे आदितीर्थकर श्रीवृषभनाथ भगवान उत्पन्न हुए और भरतक्षेत्रमें उन्होंने अपने तीर्थकी प्रवत्ति की। उनके निर्वाण होनेपर पचासलाख कोटिसागर वर्षतक सम्पूर्ण श्रुतज्ञान अविच्छिन्न रूपसे प्रकाशित रहा। अनन्तर दूसरे तीर्थकर श्रीअजितनाथ भगवानने अवतार लिया और वे भी अपने शिष्योंको भलीभांति उपदेश करते हुए मोक्ष पधारे । उनके पश्चात् भी श्रुतज्ञान अस्खलित गतिसे चलता रहा। श्रीअजितनाथके निर्वाण हो जानेके तीसलाखकोटि सागर पीछे शम्भवनाथजी, उनसे दशलाखकोटि सागर पीछे श्रीअभिनन्दन उनसे नौलाख कोटि सागर पाछे श्रीसुमतिनाथ नव्वेहजार कोटिसागर पीछे पद्मनाथ नौ हजार कोटिसागर पीछे श्रीसुपार्श्वनाथ, नौसेकोटिसागर पीछे श्रीचन्द्रप्रभ और चन्द्रप्रभसे नव्वेकोटिसा
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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