SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भूमिका। " जिस जातिमें अपने पूर्व पुरुषोंके गौरवका अभिमान नहीं है, जो अपने जातीय त्योहारोंका अनादर करती है, वह जाति बहुत शीघ्र नष्ट होजाती है, उसकी गणना जीवित जातियोंमें नहीं हो सकती।" विचारशील विद्वानोंक उपर्युक्त वाक्योंकी ओर हम अपने जैनसमाजका चित्त आकर्षित करते हैं और प्रेरणा करते हैं कि, वह अपने इस अधःपतनके समयमें एक बार एकान्तमें बैठकर विचार करै कि, हमारे हृदयम पूर्व पुरुखाओंका कितना गौरव है ? हम ऐसे कितने महात्माओंके नाम जानते है, जिन्होंने हमारे लिये अनंत परिश्रम किया है, हमारे जातीय त्योहार कौन २ हैं, और उनमेंसे हम किन २ का आदर करते हैं. तथा अपनी जातीयताकी रक्षा करनेके लिये हमारे पास इस समय क्या २ साधन हैं । आशा है कि इन विषयोंका अनुशीलन करनेसे समाजमें अपने खोये हुए गौरवको प्राप्त करनेके लिये उत्सुकता उत्पन्न हुए बिना नहीं रहेगी। पाठक महाशय : आज जो यह छोटासा किन्तु अनन्त उपकारी ग्रन्थ आपके समक्ष है. एक जातीय प्राचीन पर्वका स्मरण कराने के लिये, उसका गौरव प्रगट करने के लिये और उसका लुप्त हुआ प्रचार पुनः प्रचलित करने के लिये प्रकाशित किया जाता है । इसमें जैनागमका अवतार संसार में किस प्रकारसे हुआ इस विषयका इतिहास है। जुलुस __ आपको स्मरण होगा कि श्रुतपंचमी पर्वका उत्सव प्रचलित कानावें । लिये अनेक वर्षों से आन्दोलन किया जा रहा है. परन्तु उसका शास्त्री
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy