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________________ ४९ I और पूजनका अधिकार ही क्या ? जैनशास्त्रोंके देखनेसे तो मालूम होता है कि अपध्वंसज लोग जिनदीक्षातक धारण कर सकते हैं, जिसकी अधि कार प्राप्ति शूत्रों को भी नहीं कही जाती । उदाहरणके तौरपर राजा कर्णहीको लीजिये । राजा कर्ण एक कुँवारी कन्यासे व्यभिचारद्वारा उत्पन्न हुआ था और इस लिये वह अपध्वंसज और कानीन कहलाता है। श्रीजिनलेनाचार्यकृत हरिवंशपुराणमें लिखा है कि महाराजा जरासिंधके मारे जानेपर राजा कर्ण ने सुदर्शन नामके उद्यानमें जाकर दमवर नामके दिगम्बर मुनिके निकट जिनेश्वरी दीक्षा धारण की। श्रीजिनदास झ चारीकृत हरिवंशपुराण में भी ऐसा ही लिखा है, जैसा कि उसके निम्नलिखित लोकसे प्रगट है: ――― “विजितोऽप्यरिभिः कर्णो निर्विण्णो मोक्षसौख्यदाम् । दीक्षां सुदर्शनोयाग्रहीद्दमवरान्तिके ।। २६-२०८ ॥" अर्थात् — शत्रुओंसे विजित होनेपर राजा कर्णको वैराग्य उत्पन्न होगया और तब उन्होंने सुदर्शन नामके उद्यानमें जाकर श्रीदमवर नामके " मुनिके निकट, मोक्षका सुख प्राप्त करानेवाली, जिनदीक्षा धारण की । इससे यह भी प्रगट हुआ कि अपध्वंसज लोग अपने वर्णको छोड़कर शूद्र नहीं हो जाते; बल्कि वे शूद्रोंसे कथंचित् ऊंचा दर्जा रखते हैं और इसीलिये दीक्षा धारण कर सकते हैं। ऐसी अवस्थामें उनका पूजना - faare और भी निर्विवाद होता है । यदि थोड़ी देरके लिये व्यभिचारजातको पूजनाऽधिकारसे वंचित रक्खा जावे तो कुंड, गोलक, कानीन और सहोढादिक सभी प्रकारके व्यभिचारजात पूजनाऽधिकारसे वंचित रहेंगे-भतरके जीवित रहनेपर जो संतान जारसे उत्पन्न होती है; वह कुंड कहलाती है । भर्त्तारके मरे पीछे जो संतान जारसे उत्पन्न होती है उसको गोलक कहते हैं । अपनी माताके घर रहनेवाली कुँवारी कन्यासे व्यभिचारद्वारा जो संतान उत्पन्न होती है वह कानीन कही जाती है और जो संतान ऐसी कुँवारी कन्याको गर्भ रह जानेके पश्चात् उसका विवाह हो जानेपर उत्पन्न होती है, उसको सहोढ कहते हैं- इन चारों भेदोंमेंसे गोलक और कानीनकी परीक्षा जि० ० पू० ४
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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