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________________ श्रीवीतरागाय नमः श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्यविरचिता बारस अणुबेक्खा। [ द्वादशानुप्रेक्षा।] निदा -- - - मिऊण सव्वसिद्धे झाणुत्तमम्वविददीहसंसारे । दस दस दो दो यजिणे देस दो अणुपेहणं वोच्छे।।१ नत्वा गर्वसिद्धान् ध्यानोत्तमक्षपितदीर्घसंसारान् । दश दश द्वौ द्वौ च जिनान् दश द्वै। अनुप्रेक्षणानि वक्ष्ये ॥१॥ अर्थ-अपने परमशुक्ल ध्यानमे अनादि अनंत संसारको क्षय करनेवाले सम्पूर्ण सिद्धोंको तथा चावीस तीर्थकरोंको नमस्कार करके मैं बारह भावनाओंका स्वरूप कहता हूं। अडवममरणमेगत्तमण्णसंसार लोगममुचित्तं । . आसवमंवरणिजरधम्मं वोहिं च चिंतेजो ॥२॥ अद्भवमशरणमेकत्वमन्यसंमागे लोकमशुचित्वं । आम्रवसंवरनिर्जरधर्म बोधिं च चिन्तनीयम् ।। २ ॥ अर्थ-अनित्य, अशरण, एकत्व, अन्यत्व, संसार, लोक, अशुचित्व, आस्रव, संवर, निर्जरा, धर्म और बोधिदुर्लभ इन वारह भावनाओंका चिन्तवन करना चाहिये।
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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