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________________ (८) अन्यका नाम देनेकी आदरणीय उदारता दिखलानेमें श्रुटि नहीं की आज उसीकी उदारतासे हमको यह निश्चय करनेका पुष्ट प्रमाण मिला है कि, यह ग्रन्थ यथार्थमें किसका है। अन्यथा जो जिसक जीमें आता था कहता था । महाराज अमोघवर्षका राज्याभिषेक शक संवत् ७३७ (विक्रम संवत् ८७२ ) में हुआ था । शक संवत् ७९७ (विक्रम संवत ९३२) से पूर्व उन्होंने राज्य छोड दिया था। और ७९९ (वि० संवत ९३४ ) तक वे विद्यामान थे। इसके पछेि किसी समयमें उनका देहान्त हुआ होगा। ऐसा प्राचीन लेखों और ताम्रपत्रोंसे निश्चित हुआ है। अतएव यदि राज्य छोडनके पश्चात् मुनि अवस्थामें उन्होंने प्रश्नोत्तरलमाला बनाई हो तो उसका समय विक्रम संवत् ९३२ के लगभग स्थिर हो सकता है । __उपसंहारमें हम उन महाशयोंसे जो प्रश्नोत्तररत्नालाके अधिकारी बनते हैं, प्रार्थना करते हैं कि, महाराज अमोघवर्षने प्रश्नोत्तररत्नमाला जगत्के उपकारके लिये बनाई है उसके उपदेशसे लाभ उठानेका ठेका किसी एक सम्प्रदायको नहीं है । इस लिये आप सब लोग प्रसन्नतासे उसका पाठ कीजिये छपाइये परन्तु किसीकी कृतिको नष्ट करके उसके अपना व अपने आचार्योका स्वत्व स्थापित करना बुद्धिमानोंका कर्तव्य नहीं है । इसलिये जिस रूपमें वह है उसी रूपमें पठनपाठनमें लाइये अन्यथा आपके कारण आपके आचार्योंको इस श्लोकका निशाना बनाना पड़ेगाःकृत्वा कृती: पूर्वकृता पुरस्तात्मत्यादरं ताः पुनरीक्षमाणः । तथैव जल्पेदध योऽन्यथा वा स काव्यचोरोऽस्तु स पावकी च ।। इत्पलम् विस्तरण . ( यशस्तिलकचम्पुकाव्ये ) चन्दाबाड़ी ) ६-११-०६। नाथूराम प्रेमी। धर्मसेवक--
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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